ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिण्डोला में "लोहड़ी" का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया
लखनऊ। लोहड़ी के
त्यौहार का विशेष आयोजन गुरुसिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका
हिण्डोला, लखनऊ में धूमधाम से मनाया गया।
इस अवसर पर लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष
राजेन्द्र सिंह बग्गा ने उपस्थित संगतों एवं समस्त नगरवासियों को लोहड़ी
के त्यौहार की बधाई देते हुए कहा कि लोहड़ी एक सामाजिक पर्व है। यह पंजाबी
समाज के लोग बेटे की शादी की पहली लोहड़ी या बच्चे के जन्म की पहली लोहड़ी
बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ मनाते हैं। गुरुद्वारा भवन के समक्ष कोविड-19
की गाइडलाइन मास्क लगाकर एवं सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए अध्यक्ष
राजेन्द्र सिंह बग्गा द्वारा लकड़ियों में अग्नि देकर इस कार्यक्रम का
शुभारम्भ किया गया।
यह त्यौहार मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर मनाया
जाता है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़
की रोड़ी) के शब्दों से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से
प्रसिद्ध हो गया। इस पर्व पर लकड़ियों को इकट्ठा कर आग जलाई जाती है और
अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख शान्ति से
व्यतीत होने की कामना करते हैं और उसमे रेवड़ी, मूंगफली खील, मक्की के
दानों की आहूति देते हैं और साथ ही नाचते गाते हैं। जिस घर में नई शादी हुई होती है
या बच्चा पैदा होता है वह इस त्यौहार को विशेष तौर पर मनाते हैं। स्टेज
सेक्रेट्ररी सतपाल सिंह मीत ने कहा कि लोहड़ी की रात बहुत ठंडी और लम्बी
होती है। लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा हो जाता है।
गाथा है कि
बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का डाक था पर वह दिल का बड़ा नेक था
वह अमीरों को लूटकर गरीबों में बांट देता था। वह अमीरों द्वारा जबरदस्ती से
गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वाकर उन लड़कियों की शादी करवा देता
था और दहेज भी अपने पास से देता था। वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से
प्रसिद्ध हो गया। तभी से लोहड़ी की रात लोग आग जला कर और रंग-बिरंगे कपड़े
पहन कर नाचते गाते हैं और उसका गुणगान करते हैं पंजाब के प्रसिद्ध लोक गीत-
सुंदर मुंदरिए हो,
तेरा
कौन विचारा-हो,
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर
पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां
लुट्टी हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए हो
इक पोला घिस गया जिमींदार
वोट्टी लै के नस्स गया-हो! गाकर इस पर्व को मनाते हैं। उसके उपरान्त
मक्के के दाने रेवड़ी, चिड़वड़े, तिल के लडडू का प्रसाद श्रद्धालुओं में
वितरित किया गया।
नोट:- दिनांक 14 जनवरी 2021 को सायं 06:30 बजे से रात्रि
09:15 बजे तक माघ माह संक्रान्ति पर्व मनाया जायेगा। दीवान की समाप्ति के
उपरान्त गुरु का लंगर वितरित किया जायेगा।