हमारी आयु अनादि और अनंत है



शरीर कभी एकरूप नहीं रहता और सत्ता कभी अनेकरूप नहीं होती। शरीर जन्म से पहले भी नहीं था, मरने के बाद भी नहीं रहेगा तथा वर्तमान में वह प्रतिक्षण मर रहा है। 

शरीर की तीनों- बाल, युवा और बृद्ध अवस्थायें स्थूल शरीर की हैं। परंतु स्वरूप की चिन्मय सत्ता इन सभी अवस्थाओं से अतीत है। अवस्थाएँ बदलती है पर स्वरूप वही रहता है। 

जन्मना और मरना हमारा धर्म नहीं है प्रत्युत शरीर का धर्म है। हमारी आयु अनादि और अनंत है। जैसे हम अनेक वस्त्र बदलते रहते हैं, पर वस्त्र बदलने पर हम नहीं बदलते। ऐसे ही अनेक योनियों में जाने पर भी हमारी सत्ता नित्य निरंतर ज्यों की त्यों रहती है।

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