ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिण्डोला में माघ माह का संक्रान्ति पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

लखनऊ। गुरूसिंह सभा, ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिण्डोला, लखनऊ में माघ माह संक्रान्ति पर्व मनाया गया एवं 40 मुक्तों को श्रद्धा सुमन हर्षोल्लास किये गये। प्रातः के दीवान में 40 मुक्तों पर व्याख्यान करते हुए ज्ञानी सुखदेव सिंह ने कहा कि मुक्तसर साहिब को पहले ”खितराणे की ढाब” के नाम से जाना जाता था।

भाई माह सिंह एवं उनके 40 साथी सिंह मुक्तसर की सर जमीन पर शहीद हुए दसम पिता गुरु गोबिन्द सिंह के समय आनन्दपुर साहिब जंगों एवं युद्धों का मैदान बना रहा उस समय माझे के सिक्ख रोज की जंगों एवं मुश्किलों को देख कर गुरु घर से चले गये और गुरु साहिब को लिख कर दे गये कि आप हमारे गुरु नही और हम आपके सिक्ख नही सिक्ख इतिहास में इसे ”बेदावा” कहा गया माई भागो जैसी सबरवाली माईयों ने बेदावा देने वाले सिंहों को बहुत फटकार लगाई और उनकों चूड़ियां डालकर घर में रहने को कहा खुद जंग में जाने के लिए तैयार हो गई जब माई भागो जत्थे की अगुवाई करने के लिए मैदान में जाने के लिए तैयार हो गई, तब सिंहों को पछतावा हुआ वह फिर जत्थेदारी के लिए तैयार हुए 40 मुक्तों के जत्थेदार भाई माहा सिंह सन् 1705 शाही फौजौं के साथ मुक्तसर में खितराणे की ढाब में लड़े और इन 40 सिंहों ने शहीदी प्राप्त की गुरु साहिब भाई माहा सिंह के पास पहुचे तब उनके अन्दर कुछ ही सांसें बाकी थी।

  

गुरु गोबिन्द सिंह ने भाई माहा सिंह का मुँह साफ किया और पानी पिलाया जब माहा सिंह को होश आया गुरु ने पूछा अगर आप की कोई इच्छा है तो बताओ माहा सिंह ने नम्रता से कहा हजूर कोई दुनियावी इच्छा नही है। गुरु साहिब ने फिर कहा वर ही मांग लो तब माहा सिंह ने बेनती की कि पातशाह अगर खुश हैं, तो माझे की संगत का बेदावा फाड़ कर फेंक दो और कोई लालसा नहीं गुरु ने माहा सिंह को अपनी गोद में लेकर सिर्फ बेदावा ही नहीं फाड़ा, माहा सिंह को अनमोल वरदान भी दिया और कहा माहा सिंह आप ने माझे की सिक्खी बचा ली है। इस तरह 40 मुक्तों के जत्थेदार अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने 39 साथी सिंहों के लिए भी 40 मुक्तों की उपाधि लेकर दरगह प्रवान हुए गुरु गोबिन्द सिंह जी इन 40 सिंहों को मुक्ति का वरदान दिया एवं 40 मुक्तों के नाम से निवाजा गया।

शाम का विशेष दीवान 06:30 बजे रहिरास साहिब के पाठ से प्रारम्भ हुआ जो रात्रि 09:30 बजे तक चला जिसमें रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुर वाणी में, शबद कीर्तन- माघि मजनु संगि साधूआ धूड़ी करि स्नान।।  नाम सिमरन द्वारा आई साध संगतों को निहाल किया तत्पश्चात् ज्ञानी हरविन्दर सिंह ने माघ माह संक्रान्ति पर्व की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए ईश्वरीय गुणों का वर्णन किया कि इस माह में तीर्थ स्नान करने से मनुष्य के तन मन की मैल तो धुल जाती है परन्तु मन की मैल नही धुल पाती क्योंकि पानी की पहुँच मन तक नही है। 

मन तो अपवित्र रहता है, मन की मैल तो केवल प्रभु सिमरन करने से ही पवित्र होती है इसलिये पानी और बाणी मे बड़ा अन्तर है। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। दीवान की समाप्ति के पश्चात लखनऊ गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष स0 राजेन्द्र सिंह बग्गा ने आयी साध संगतों को माघ माह संक्रान्ति पर्व की बधाई दी एवं 40 मुक्तों को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। तत्पश्चात गुरू का लंगर श्रद्धालुओं में वितरित किया गया।

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