राम, कृष्ण, काली, दुर्गा,शिव सब एक ही रूप है



कुछ लोग त्रिदेवों या उनके अवतारों को ईश्वर मानते हैं तो कुछ लोग देवियों को इस स्थान पर देखते हैं। बहुत से लोग तो उस निर्गुण -निराकार को ही भगवान मानते है।

ऐसा भी होता है कि हममें से कुछ लोग अपने आराध्य की भक्ति में कभी -कभी इतने बह जाते हैं कि किसी दूसरे भगवान को कम भक्ति से देखते हैं। ये गलत है और महाराज जी के भक्तों को ऐसा करने से बचना चाहिए।

संभवतः महाराज जी यहाँ हम भक्तों को समझा रहे हैं की वास्तव में हम सब आत्माओं का मूल वो परम- आत्मा तो एक ही है - बस हम लोग अपनी श्रद्धा, अपने भावों के अनुसार उन्हें अलग -अलग नाम से पूजते हैं,  याद करते हैं।

हमारे निष्ठापूर्वक प्रयत्न करने के उपरांत यदि भगवान के किसी भी रूप में हमारा मन लगने लगता है और हम अपने इष्ट के गुणों पर धैर्यपूर्वक चलने की कोशिश भी करने लगते हैं जैसे की दानी, दयालु, क्षमाशील इत्यादि तो ईश्वर भक्ति का वास्तविक रुप और ज्ञान होना संभव है - महाराज जी के आशीर्वाद और कृपा से।

केवल हिंदुओं में ही नहीं बल्कि हर धर्म में वह सर्वशक्तिशाली ईश्वर एक ही है। कितना अच्छा हो कि हम हर भगवान में अपने ही आराध्य की छवि देखें। ईश्वर तो सब जगह हैं, सबमें है।

महाराज जी सबका भला करें।

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