किसी ऐतिहासिक इमारत में धर्म ध्वजा फहराने का औचित्य समझ से परे है
दो माह से शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहे कई तो इस दौरान अपने प्राणों की आहूति दे बैठे और परलोक को प्राप्त हुए लेकिन उपद्रव और हिंसा का सहारा कतई नही लिया किन्तु इनके चंद नेताओ की जिद्द के कारण कल लाल किले में निंदनीय व दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई है। इस घटना को लेकर पाकिस्तान जैसा देश भी आज भारत की खिल्ली उड़ा रहा है।
किसान नेताओ का कहना है कि उनका लालकिला जाने का कोई प्रोग्राम नही था। बीच मे एक जत्था पता नही कहा से अचानक आ गया और लाल किले की तरफ बढ़ गया। वहां उसने धर्म ध्वजा फहरा दी।
लालकिले पर तिरंगा फहराने का अधिकार पीएम को है क्योंकि वे पीएम है। किसी ऐतिहासिक इमारत में धर्म ध्वजा फहराने का औचित्य समझ से परे है किंतु यह स्पष्ट है कि वे ऐसा कर के आंदोलन के हिंसक होने का संदेश देना चाहते थे। आखिर कौन थे वे लोग? कौन थे वे लोग जो किसानों के तरीकों से वाकिफ होकर भी उनकी बात मानना नही चाहते थे?
दुःख इस बात का अवश्य है कि किसान नेताओ को कल हुई घटना का पूर्वनुमान था, उन्हें पता था कि इस तरह भीड़ में उपद्रवी तत्व घुस कर उनके मंसूबो में पानी फेर देंगे और सरकार को उनके खिलाफ खड़ा कर देंगे।
कल जिस सूझ बूझ का पोलिस और सरकार ने परिचय दिया है वह अकल्पनीय है किंतु अपनी जिद्द और उतावले पन के कारण निर्दोष और बेकसूर लोगो की जिंदगी पर दांव में झोंक देने वाले, दंगे जैसे हालात उतपन्न कराने वाले, कल हुई घटना के कारण दुनियां भर में देश की नाक कटवाने वाले किसान नेता विधिक कार्यवाही के पात्र है। उनका यह आचरण नजरअंदाज करने योग्य नही है। कल हुई घटना के मूल में एक मात्र कारण इन किसान नेताओ की जिद्द है।
सरकार को चाहिए IPC 121, 124A में मामला दर्ज करते हुए इनके विरुद्ध कार्यवाही करे। आंदोलन करने का अधिकार है किंतु आंदोलन के नाम पर जानबूझ कर हिंसा, उग्रता, बलवा, दंगा या गृहयुद्ध उतपन्न करने वाली परिस्थितियों को पैदा करने का अधिकार कतई नही है।
(निखिलेश मिश्र)