ईश्वर की भक्ति के सिवा बाकी सब व्यर्थ है
मनुष्य को जिस जिसमें विशेषता मालूम दे, उस उसमें भगवान की ही विशेषता मानते हुए भगवान का ही चिंतन करना चाहिए। अगर भगवान को छोड़कर दूसरे वस्तु, व्यक्ति आदि की विशेषता दीखती है तो यह पतन का कारण है।
भगवान के सिवाय दूसरी किसी वस्तु की विशेषता को लेकर मन खिंचता है तो पाप का दोष आ जाता है, अर्थात भगवान के अनन्य भाव का व्रत भंग हो जाता है। जिस किसी में जो भी विशेषता है, वह प्रभु की है। तथापि जिनसे हमें लाभ हुआ है अथवा हो रहा है उनके हम कृतज्ञ जरूर बने। उनकी सेवा करें,परंतु उनकी व्यक्तिगत विशेषता मानकर वहां फँस न जायें।