कितना सुन्दर है वह "लोकतंत्र" जिसमें लोक, तंत्र के पीछे हाथ जोड़कर घूमता है


गणतंत्र दिवस!
अच्छा लगता है उस महान गणतंत्र का हिस्सा होना जिसकी समूची व्यवस्था व्यक्ति से सबसे पहले उसकी जाति पूछती है। जहाँ कागज का टुकड़ा आदमी से पूछता है कि तुम कवन जात हो... व्यवस्था व्यक्ति की जाति जानने के बाद तय करती है कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए।

अच्छा ही लगता है उस गणतंत्र का हिस्सा होना जहाँ भगत सिंग, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, रामप्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और उनके जैसे असँख्य बलिदानियों के बच्चे शोषक कहलाते हैं, और औरंगजेब के बच्चे शोषित। अच्छा लगता है उस गणतंत्र को नमन करना, जहाँ सत्ता पाने का स्वप्न देख रहा कोई अनपढ़ गंवार अपने मंच से सरेआम किसी को उसकी धार्मिक या पारंपरिक मान्यताओं के कारण गाली देता है, और व्यवस्था उसे क्रांति मान कर चुप हो जाती है।

महान है वह गणतंत्र जहाँ वेदों, पुराणों, स्मृतियों की आलोचना करने के लिए उन्हें पढ़ने की आवश्यकता नहीं समझी जाती, बल्कि सरस सलिल पढ़कर भी मनुस्मृति की आलोचना की जा सकती है। महान है वह धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र जहाँ की संवैधानिक व्यवस्था उसे कभी भी धर्म, जाति, समाज या क्षेत्र से निरपेक्ष नहीं होने देती। यहाँ व्यक्ति की धमनियों में भले केवल रक्त बहता हो, पर उसके सरकारी रिकॉर्ड में उसकी जाति बहती है। अच्छा ही लगता है उस भीड़ का हिस्सा होना, जिसमें मात्र दस प्रतिशत लोग अपना कर्तव्य याद रखते हैं और शेष नब्बे प्रतिशत लोग केवल अधिकार।


वे सरकार से केवल लेना जानते हैं। उन्हें अपने लिए, अपने दर्जन भर बच्चों के लिए सरकार से सब कुछ चाहिए। सब कुछ... नमन के योग्य हैं वे सारे लोग, जिन्होंने अथक प्रयासों के बाद ऐसी महान व्यवस्था गढ़ी है। जो व्यवस्था पिछड़े समुदाय के लोगों के लिए निर्धारित की गई विशेष सुविधाओं को सत्तर वर्षों में दस प्रतिशत लोगों तक भी नहीं पहुँचा पाई हो, उस व्यस्था के व्यवस्थापकों और निर्माताओं को सौ-सौ बार नमन किया जाना चाहिए। कितना सुन्दर है वह लोकतंत्र जिसमें लोक, तंत्र के पीछे हाथ जोड़ कर घूमता है। मैं जब अपने गाँव-समाज में तंत्र द्वारा पैरों तले मसल दिए गए लोगों को देखता हूँ तो अनायास ही मेरे हाथ जुड़ जाते हैं।

लोकतंत्र का तंत्र एक ओर तो कमजोरों को मसलता रहता है, वहीं दूसरी ओर बलवानों द्वारा मसल दिया जाता है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप तन्त्र को मसल देना चाहते हैं, या मसल दिए जाना चाहते हैं। यहां सौम्य और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार लोकतांत्रिक नहीं माना जाता। खैर! लोकतंत्र की जनता केवल नमन करने के लिए होती है। कभी सत्ता को, कभी विपक्ष को, कभी व्यवस्था को... हम भी कर रहे हैं, करते रहेंगे। आप भी कीजिये...


सर्वेश तिवारी श्रीमुख

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