सफलताएँ 'किस्मत' से नहीं, 'मेहनत' से मिलती हैं

आज का आदमी मेहनत में कम और मुकद्दर में ज्यादा विश्वास रखता है। आज का आदमी सफल तो होना चाहता है मगर उसके लिए कुछ खोना नहीं चाहता है। वह भूल रहा है कि सफलताएँ किस्मत से नहीं मेहनत से मिला करती हैं। याद रखना किस्मत बनती ही तब है जब आदमी मेहनत करता है।

किसी की शानदार कोठी देखकर कई लोग कह उठते हैं कि काश अपनी किस्मत भी ऐसी होती लेकिन वे लोग तब यह भूल जाते हैं कि ये शानदार कोठी, शानदार गाड़ी उसे किस्मत ने ही नहीं दी अपितु इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत रही है। मुकद्दर से मिलता अवश्य है मगर उतना मेहनत करने वाले जितना छोड़ दिया करते है।

अत: ये नहीं कहा जा सकता कि किस्मत का कोई स्थान ही नही, कोई महत्व ही नहीं, किस्मत का भी अपना महत्व है। मेहनत करने के बाद किस्मत पर आश रखी जा सकती है मगर खाली किस्मत के भरोसे सफलता प्राप्त करने से बढ़कर कोई दूसरी नासमझी नहीं हो सकती है। दो अक्षर का होता है "लक" ढाई अक्षर का होता है "भाग्य" तीन अक्षर का होता है "नसी" लेकिन चार अक्षर के शब्द "मेंहनत" के चरणों में ये सब पड़े रहते हैं।

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