ईश्वर को केवल अनन्य भक्ति से ही देखा जा सकता है

 
देवताओं का शरीर दिव्य होता है, पर भगवान का शरीर उससे भी विलक्षण होता है। देवताओं का शरीर भौतिक तेजोमय और भगवान का शरीर चिन्मय होता है। भगवान का न तो देवत्व शक्ति से देखा जा सकता है और न यज्ञ, तप, दान आदि शुभ कर्मों से देखा जा सकता है। उनको तो केवल अनन्य भक्ति से ही देखा जा सकता है।

अनन्य भक्ति देवता और मनुष्य दोनों ही भगवान को देख सकते हैं। देवताओं में भगवान को देखने का शौक है, प्रेम नहीं। भक्त प्रेमपूर्वक भगवान को देखना चाहते हैं लेकिन देवता नहीं। इसलिए भगवान प्रेमी भक्तों के अधीन हैं पर देवताओं के अधीन नहीं हैं।

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