श्रद्धा के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता

 
 
भक्ति भय से नहीं श्रद्धा और प्रेम से होती है। भय से की गई भक्ति में भाव तो कभी जन्म ले ही नहीं सकता और बिना भाव के भक्ति का पुष्प नहीं खिलता। श्रद्धा के बिना ज्ञान प्राप्त हो ही ना पायेगा। श्रद्धा ना हो तो व्यक्ति धर्मभीरु बन जाता है। उसे हर समय यही डर लगा रहता है कि फलां देवता नाराज हो गया तो कुछ हो तो नहीं जायेगा।
 
प्रारब्ध में जितना लिखा है उतना तो तुम्हें प्राप्त होकर ही रहेगा, उसे कोई रोक ना पायेगा। भगवान तो सब पर अकारण कृपा करते रहते हैं, कोई उन्हें माने या ना माने तो भी। उसने हमें जन्म दिया, जीवन दिया और हर कदम पर संभाला। क्या यह सब पर्याप्त नहीँ है प्रभु से प्रेम करने के लिए ? भाव और प्रेम से मंदिर जाओगे तो खिले-खिले लौटोगे।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें