गुरुद्वारा नाका हिण्डोला में साका (नरसंहार) ननकाना में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये
लखनऊ। श्री गुरु सिंह सभा ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला, लखनऊ में प्रातः के दीवान में साका (नरसंहार) ननकाना में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये। प्रातःके दीवान में श्री सुखमनी साहिब जी के पाठ के उपरान्त रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुर वाणी में शबद कीर्तन गायन कर साध संगत को निहाल किया।
मुख्य ग्रन्थी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने 1920 ई0 में ननकाना साहिब में गुरुद्वारा के अंदर किए जा रहे कुरीतियों के सुधार के लिए नेताओं ने सभा की। गुरुद्वारा ननकाना साहिब श्री गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान है, जो अब पाकिस्तान में है। जब महंत नरायण दास को खुद को सुधारने के लिए कहा गया, तो उसने पंथ (सिख समुदाय) का विरोध करने की तैयारी शुरू कर दी। महंत ने सिखों का विरोध करने के लिए गुंडे और बदमाशों की भर्ती की। अंग्रेज सरकार की मदद से बंदूकें, पिस्तौल, हथियार और गोला-बारूद, पैराफिन के टिन एकत्र किए। गुरुद्वारे के गेट को मजबूत किया और उसमें छेद करवाए ताकि गोलियों को निकाला जा सके।
सभा के लोग ननकाना साहिब पहुंचे और गुरुद्वारे में प्रवेश किया। महंत को शाम को दस्ते के आने की खबर मिली थी। उसने रात को अपने आदमियों को इकट्ठा किया। महंत के लोगों ने मुख्य द्वार को बंद कर दिया और छत के ऊपर से गोलीबारी शुरू कर दी। 26 सिंह आंगन में उन गोलियों सेे शहीद हो गए, दरबार साहिब के अंदर बैठे भाई लक्षमन सिंह धारोवाल जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की गद्दी पर बैठे थे उनको महन्त के गुंडों ने गद्दी से उठाकर बांधकर जो आंगन में पेड़ था। उस पर उलटा लटका कर नीचे आग लगाकर जिन्दा शहीद कर दिया गया। वो पेड़ आज भी उस आंगन में खड़ा उस वक्त की गवाही देता है। जब महंत के लोगों ने किसी को नहीं देखा, तो वे तलवार लेकर नीचे आए। जिस भी सिंह को उन्होंने सांस लेते पाया, उसके टुकड़े काट दिए गए।
बंदूक की गोली की आवाज पर भाई दलीप सिंह और भाई वरयाम सिंह, जो भाई उत्तम सिंह की फैक्ट्री में बैठे थे, उठकर गुरुद्वारे की ओर बढ़े। जब महंत ने उन्हें आते देखा तो उसने भाई दलीप सिंह को अपनी पिस्तौल से गोली मार दी। भाई वारयाम सिंह को तलवार से काट दिया। उन्होंने अपने शरीर को किले में फेंक दिया, जहाँ दूसरे शरीर भी जल रहे थे। जब कोई सिंह रेलवे लाइन तक नहीं देखा तो महंत ने अपने आदमियों को सभी शवों को इकट्ठा करके, पैराफिन डालने और उन्हें जलाने के लिए कहा। सरदार उत्तम सिंह ने ननकाना साहिब रेलवे स्टेशन मास्टर के माध्यम से पंजाब के गवर्नर, कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक और सिख केंद्रों को खबर दी। उन्होंने बीस पठानों को गिरफ्तार किया और गुरुद्वारे पर ताला लगा दिया।
कमिश्नर ने भाई करतार सिंह झब्बर को गुरुद्वारे की चाबी सौंपी। 21 तारीख को शाम को सिख परंपरा के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार किया गया। महंत और उसके गुंडों की बेशर्मी का इससे ज्यादा सबूत क्या है कि उन्होंने महंत की मदद की है। आपने अपनी बंदूकों और तलवारों का इस्तेमाल उन लोगों के खिलाफ किया जो ननकाना साहिब में धार्मिक कर्तव्यों को निभाने के लिए गए थे। महंत, 20 पठानों और उनके समूह के अन्य लोगों को ब्रिटिश द्वारा सजा सुनाई गई थी। महंत और पठानों को 50 से अधिक हत्याओं के अपराध के लिए मौत की सजा मिली। ननकाना साहिब हत्याकांड की खबर ने देश को झकझोर कर रख दिया। अपरान्ह के कार्यक्रम में सिमरन साधना परिवार संस्था की ओर से श्री गुरू सिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिन्डोला लखनऊ में अपरान्ह 03:00 बजे से शाम 06:00 बजे तक चौपहरा (चौथे पहर में किये जाने वाले पाठ) समागम का आयोजन किया गया।
जिसमें समूह संगत द्वारा श्री सुखमनी साहिब, चौपाई साहिब का पाठ एवं संस्था के बच्चों ने शबद कीर्तन गायन एवं नाम सिमरन द्वारा समूह संगत को निहाल। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। दोनों दीवानों की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने साका ननकाना साहिब में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए एवं बच्चों द्वारा शबद गायन एवं नाम सिमरन की सराहना की और उनका मनोबल बढ़ाया। उसके उपरान्त श्रद्धालुओं में कड़ाह प्रसाद एवं चाय का लंगर वितरित किया गया।