दुर्बलता का ज्यादा विचार करने से स्वयं के भीतर हीन भाव आ जाता है

  
भगवान की शरणागति के अलावा किसी अन्य मार्ग से माया को नहीं जीता जा सकता है। यह माया बड़ी प्रबल है और दूसरे हमारे साधन में निरंतरता नहीं है लेकिन अगर गोविन्द की कृपा हो जाये तो काम-क्रोध और विषय-वासना से मुक्त हुआ जा सकता है। तुम भले हो, बुरे हो, सज्जन हो, दुर्जन हो, पापी हो, पुण्यात्मा हो, कुछ मत सोचो।
 
अपनी दुर्बलता का ज्यादा विचार करोगे तो आपके भीतर हीन भाव आ जायेगा। अपने सत्कर्मों और गुणों को ज्यादा सोचोगे तो अहम भाव आ जायेगा। बस इतना सोचो कि ठाकुर जी के चरण कैसे मिलें, शरण कैसे मिले, नाम जप कैसे बढे, संतों में प्रीति कैसे हो और कथा में अनुराग कैसे बढे ? यह सब हो गया तो प्रभु को आते देर ना लगेगी।

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