मुश्लिमों के लिए भारत सबसे सुरक्षित देश है

 
संसद में गुलाम नबी आजाद के लिए मोदी ने जो कहा वह सबके लिए आश्चर्यजनक था। उधर गुलाम नबी आजाद ने भी जो अपने अंतिम भाषण में कहा वह भी आश्चर्यजनक ही था। जिस सदन से हामिद अंसारी जैसे लोग भारत को कोसते हुए निकले हैं, उस सदन को छोड़ते समय उस कश्मीरी का यह कहना कि "मुश्लिमों के लिए भारत सबसे सुरक्षित देश है" सुखद ही है। आजाद के इस बयान ने कल भारत को अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षित बताने वाले कांग्रेसी एजेंडे की धज्जी उड़ा दी।
 
मोदी ने आजाद के लिए जो कहा वह अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है, पर एक संसद सदस्य और प्रधानमंत्री के रूप में यह एक आदर्श व्यवहार था। देश की संसद का व्यवहार इतना सकारात्मक तो होना ही चाहिए। फिर भी बात किसी को पच नहीं रही। न भाजपा समर्थकों को, न कांग्रेस समर्थकों को। दरअसल पिछले आठ दस वर्षों में देश मे एक बहुत बड़ा वैचारिक बदलाव आया है। अब लोग अपने राजनैतिक विचारों को लेकर इतने कट्टर और उग्र हो गए हैं कि किसी के अंदर विरोधी विचारों के लिए कोई सम्मान नहीं बचा।
 
एक कांग्रेस समर्थक भाजपा समर्थकों को गाली देता रहता है, तो भाजपा समर्थक कांग्रेसियों को... यह स्थिति दस वर्ष पूर्व तक नहीं थी। उस सदन ने एक ही साथ अटल, चंद्रशेखर, और नरसिम्ह राव को साथ बैठ कर हँसी मजाक करते देखा है। उस सदन ने किसी कांग्रेसी सांसद की चुहल पर अटल को हँस कर कहते सुना है कि "अविवाहित हूँ, ब्रह्मचारी नहीं..." उस सदन ने यह भी देखा है कि प्रधानमंत्री नरसिम्ह राव ने विपक्ष के नेता अटल विहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा। क्या आज हम किसी भी पक्ष के सांसदों से ऐसी सहजता की उम्मीद कर सकते हैं?
 
यूट्यूब पर संसद का ही एक वीडियो उपलब्ध है जिसमें तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी कांग्रेस और सोनिया को धिक्कार रहे हैं क्योंकि सोनिया ने अटल की सरकार को निकम्मी और भ्रष्ट कह दिया था। अटल बोल रहे हैं और सभी कांग्रेसी सांसद चुपचाप उनकी डांट सुन रहे हैं। यह उस सदन का आदर्श था... क्या अब ऐसी उम्मीद की जा सकती है? अब तो प्रधानमंत्री के लिए लाशों का सौदागर जैसे शब्द बोले जाते हैं, और किसी को शर्म तक नहीं आती। यह केवल एक ही ओर से नहीं होता, हर ओर से एक ही तरह का व्यवहार होता है।
 
अब न नेता अपने विरोधियों का सम्मान कर रहे हैं, न ही उनके समर्थक चाहते हैं कि उनका नेता अपने विरोधियों का सम्मान करे। कल मोदी के समर्थक ही उनके आंसुओ का मजाक उड़ा रहे थे। उधर चार दिन पहले कांग्रेस के समर्थक लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर को गालियां दे रहे थे कि उन्होंने भारत के समर्थन में मिया खलीफा गैंग के विरुद्ध ट्वीट कैसे कर दिया? भारत जैसे सभ्य देश की राजनीति में यह असभ्यता ठीक तो नहीं ही है।
 
मुझे लगता है वैचारिक विरोध अपनी जगह है, पर उसके चक्कर में मर्यादा का अतिक्रमण नहीं ही होना चाहिए। देश की जनता जाने अनजाने में संसद के व्यवहार का अनुशरण करती है, तो सांसदो का भी दायित्व है कि वे सज्जनतापूर्ण व्यवहार की सीख दें।
 
 
सर्वेश तिवारी श्रीमुख

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