ताकत भगवान् के सम्बन्ध में है, उच्चारण में नहीं



अपनी मानते ही वस्तु अशुद्ध हो जाती है, भगवान की मानते ही वह शुद्ध और भगवत्स्वरूप हो जाती है। इसी तरह अपने आपको भी भगवान् से दूर और पृथक मानते ही आप अशुद्ध हो जाते हो। 

प्रत्येक पल भगवान् का स्मरण करो और उन्हें अपना मानो। इससे उनके प्रति आसक्ति प्रगट हो जाएगी। भगवान् का ह्रदय से आश्रय करते ही भगवदीय गुण स्वतः प्रगट होने लगते हैं।

छोटा बालक माँ-माँ करता है। उसका लक्ष्य, ध्यान, विश्वास माँ शब्द पर नहीं होता अपितु माँ के सम्बन्ध पर होता है। ताकत माँ शब्द में नहीं है, माँ के सम्बन्ध में है। इसी तरह ताकत भगवान् के सम्बन्ध में है, उच्चारण में नहीं।

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