पर्यावरण की शुद्धता के लिए किया गया अग्निहोत्र, शहर में पहली बार हुआ आयोजन

लखनऊ। पर्यावरण की शुद्धता, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मानस इन्क्लेव इंदिरा नगर के विवेकानंद पार्क में अग्निहोत्र कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में लखनऊ शहर के विभिन्न क्षेत्रों से अग्निहोत्र कार्य से जुड़े कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया तथा 225 लोगों ने एक साथ अग्निहोत्र कर कार्यक्रम को सफल बनाया।
 
अग्निहोत्र कार्यक्रम में प्रचारक भूपेंद्र मिश्रा ने अग्निहोत्र कार्यक्रम को विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि पर्यावरण की शुद्धता के लिए गाय के गोबर से बने उपले एवं गाय के दूध से बने घी की आहुतियां डाली जाती हैं। अग्निहोत्र यज्ञ की सबसे सरल वैदिक विधि है, जो पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करती है एवं व्यक्ति को भी अनुशासित बनाती है। शुद्ध एवं स्वच्छ पर्यावरण प्रत्येक जीवन की प्रथम आवश्यकता है। अग्निहोत्र की प्रक्रिया में 10 से 15 मिनट का समय लगता है इसमें दो आसान वैदिक मंत्रों का उच्चारण करना होता है। अग्निहोत्र विधि में समय का विशेष ध्यान रखा जाता है, आहुतियां सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय पर ही दी जाती हैं। जिस भी क्षेत्र में अग्निहोत्र होता है वहां का वातावरण सकारात्मक रहता है एवं एक बार के अग्निहोत्र से 8000 घन फिट का वातावरण शुद्ध होता है जिसे वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित भी किया गया है।
 
  
कार्यक्रम में अग्निहोत्र की विधि बताते हुए बृजेश श्रीवास्तव ने कहा कि इसके लिए सेमी पिरामिड आकार के तांबे या मिट्टी का बर्तन होना चाहिए उसमें गाय के गोबर से बने उपले, दो बूंद गाय के दूध से बना शुद्ध देशी घी व दो चुटकी चावल की आवश्यकता होती है। उपले को जलाने के लिए कपूर और माचिस का उपयोग किया जाता है। कार्यक्रम में अग्निहोत्र का इतिहास बताते हुए मेजर आर०एन० पांडे ने बताया की युग प्रवर्तक माधव जी पोद्दार ने इस वैदिक विधि को पुनर्जीवित किया तथा सत्य धर्म प्रचार प्रसार संस्थान द्वारा अग्निहोत्र का आयोजन वर्ष 1969 से लगातार किया जा रहा है, अग्निहोत्र की यह प्रक्रिया सूर्यास्त के समय की जाती है।
 
कार्यक्रम में बोलते हुए प्रशांत मिश्रा ने बताया अग्निहोत्र पात्र से बची हुई राख से औषधियां बनाने की विधा जर्मन विशेषज्ञों ने तैयार की है। इस राख से क्रीम, मलहम, पाउडर आदि तैयार करके महंगे चिकित्सा खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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