स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा

 


एक होता है गीत और फर्क होता है उदगीत गीत दूसरे को रिझाने के लिए गाते हैं और उदगीत अपनी मस्ती में गाते हैं स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा

अपने अन्तःकरण को सुख देने के लिए आषाढ़ के महीने में मोर नृत्य कर रहा हो और आप उसके पास जाय और ताली बजाकर कहें once more तो मोर क्या करेगा

मोर वहाँ से छूमंतर हो जायेगा क्योंकि वो आपको रिझाने के लिए नृत्य नहीं कर रहा है वो तो स्वयं की मस्ती में नृत्य कर रहा है। उसे आह्लाद कहते है।

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