बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती है



बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है। पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करें। फिर इस प्रकार हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार करें-

"यथा वु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामहः।

त्वां परित्यज्य नो तिष्ठंन, तथा भव वरप्रदा।।

वेद शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादिकं चरेत्।

वादितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धयः।।

लक्ष्मीर्वेदवरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभामतिः।

एताभिः परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वती

अर्थात् "देवि! जिस प्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका कभी परित्याग नहीं करते, उसी प्रकार आप भी हमें वर दीजिए कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो। हे देवि! वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य गीतादि जो भी विद्याएँ हैं, वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती हैं, वे सभी मुझे प्राप्त हों। हे भगवती सरस्वती देवि! आप अपनी- लक्ष्मी, मेधा, वरारिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा मति- इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें।

उपरोक्त विधि से पूजन कर मौन होकर भोजन करना चाहिए। प्रत्येक मास की पंचमी को सुवासिनी स्त्रियों का भी पूजन करें, उन्हें यथाशक्ति तिल, चावल, दुग्ध व घृत पात्र प्रदान करें और 'गायत्री में प्रीयताम्' ऐसा बोलें। इस प्रकार वर्ष भर व्रत करें। व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मण को चावलों से भरा पात्र, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, घंटा, अन्न आदि पदार्थ भी दान करें। यदि हो तो अपने गुरु देव का भी वस्त्र, धन, धान्य और माला आदि से पूजन करें। इस विधि से जो भी सरस्वती पूजन करता है वह विद्वान, धनी और मधुर वाणी से युक्त हो जाता है। भगवती सरस्वती की कृपा से उसे महर्षि वेदव्यास के समान ज्ञान प्राप्त हो जाता है। स्त्रियाँ यदि इस प्रकार सरस्वती पूजन करती हैं तो उनका अपने पति से कभी वियोग नहीं होता।


ज्योतिष में बसंत पंचमी

सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही रति-काम महोत्सव आरंभ हो जाता है। यह वही अवधि है, जिसमें पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोपलों से आच्छादित दिखाई देते हैं। समूचा वातावरण पुष्पों की सुगंध और भौंरों की गूंज से भरा होता है। मधुमक्खियों की टोली पराग से शहद लेती दिखाई देती है, इसलिए इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। प्रकृति काममय हो जाती है। बसंत के इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान ‘शुक्र’ का प्रभाव रहता है। शुक्र भी काम और सौंदर्य के कारक हैं, इसलिए रति-काम महोत्सव की यह अवधि कामोद्दीपक होती है। अधिकतर महिलाएं इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं। जन्मकुण्डली का पंचम भाव-विद्या का नैसर्गिक भाव है। इसी भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। यह भाव दूषित या पापाक्रांत हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है। इस भाव से प्रभावित लोग मां सरस्वती के प्राकट्य पर्व माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) पर उनकी पूजा-अर्चना कर इच्छित कामयाबी हासिल कर सकते हैं। इसके लिए माता का ध्यान कर पढ़ाई करें, उसके बाद गणेश नमन और फिर मन्त्र जाप करें। इसके अलावा संक्षिप्त विधि का सहारा भी लिया जा सकता है। हर राशि के छात्र अपनी राशि के शुभ पुष्पों से मां महासरस्वती की साधना कर सकते हैं। मेष और वृश्चिक राशि के छात्र लाल पुष्प विशेषत: गुड़हल, लाल कनेर, लाल गैंदे आदि से आराधना करके लाभ उठाएं। वृष और तुला राशि वाले श्वेत पुष्पों तथा मिथुन और कन्या राशि वाले छात्र कमल पुष्पों से आराधना कर सकते हैं। कर्क राशि वाले श्वेत कमल या अन्य श्वेत पुष्प से, जबकि सिंह राशि के लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल) से आराधना करके लाभ पा सकते हैं। धनु और मीन के लोग पीले पुष्प तथा मकर और कुंभ राशि के लोग नीले पुष्पों से मां सरस्वती की आराधना कर सकते हैं। 

अगर आप मंदिर जा रहे हैं, तो पहले ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र का जाप करें। उसके बाद माता सरस्वती के इस मन्त्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम: का जाप करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस मन्त्र के जाप से जन्मकुण्डली के लग्न (प्रथम भाव), पंचम (विद्या) और नवम (भाग्य) भाव के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। इन तीनों भावों (त्रिकोण) पर श्री महाकाली, श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी का अधिपत्य माना जाता है। मां सरस्वती की कृपा से ही विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति होती है। देवी कृपा से ही कवि कालिदास ने यश और ख्याति अर्जित की थी। वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक और व्यास जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे। 

आप सभी को बसन्त पंचमी की शुभकामना !!!!!

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें