हम देते कम है और माँगते ज्यादा हैं

 


संसार में सारे झगड़ों की जड़ यह है कि हम देते कम है और माँगते ज्यादा हैं। जबकि होना ये चाहिए कि हम ज्यादा दें और बदले की अपेक्षा बिलकुल ना रखें या कम रखें। प्रेम और सेवा कोई कर्म नहीं हमारा स्वभाव बन जाये। 

संसार में कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता, कुछ ना कुछ उसका फल जरूर मिलता है। निष्काम सेवा का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि हमारा कोई दुश्मन नहीं बनता। प्रत्येक क्षण हम हर्ष और आनंद से भरे रहते हैं। 

किसी से शिकायत करने पर जितना बदला मिलता है उससे कई गुना तो बिना माँगे ही मिल जाता है। प्रेम से उत्पन्न होने वाले आनंद का कोई मोल नहीं है। अपेक्षा ही बन्धन है, अपेक्षा जीवन को परतंत्र बनाती है, मन का सबसे स्वतंत्र हो जाना ही मोक्ष है।

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