मैं नारी हूँ तू जान ले मुझे पहचान ले
मैं नारी हूँ
हे पुरुष!
तू जान ले यह,
तू मुझे पहचान ले।
मैं कोन हूँ?
प्रश्न पर प्रश्न तू,
मुझ पर उठाता।
पर तेरा अस्तित्व किस से
न तू जान पाया।
इस धरा पर तुझकों,
अंकुरित किया किसने।
नव कपोलों से तुझे,
शोभित किया किसने।
तेरी शिराओं में तरल,
भरा किसने।
तेरे अस्थिमंजा को,
गुथा किसने।
तेरी कोमल अस्थियों में
दृढ़ता,
हे भला,आयी कहाँ से,
तू बता।
किसने तेरी नाभी जोड़ी
शिरा से
और तुझकों लहू से
पोषित किया।
हे पुरुष!
तू कुछ तो बता
राम कृष्ण महावीर
गौतम व ईसा
कोन से रास्ते से आये थे ?
ये तो बता।
सब मेरे
अस्थिमंजा को चाटकर।
पीकर मेरे ही लहू को
सब पुरुष आकर,
मुझ से ही चले।
आज मेरा अस्तित्व
मुझसे पूछता।
देह को तेरी
सुदृढ़ता किसने दी
दुग्ध मेरा ही पीया था,
स्तन खीचकर।
कोन थी वो ?
जो वन वन डोलती।
राम को,
क्या भला जगती जानती ?
मै तपी,
तुने तपाया हर कदम।
दी परीक्षा अग्नि में
वह कोन थी ?
कृष्ण को पूजे
विधाता सब कहे।
पर भला क्यों कृष्ण,
वो कृष्ण थे ?
राधा का वह स्नेह,
मीरा का प्रेम था।
जिससे बने वसुदेव सुत
कृष्ण थे।
ओ! घमंड मे चूर
मानव तू बता
महाभारत का अभिमन्यू
कौन था ?
कोख में
किसने सिखाया युद्ध था ?
जो लड़ा अरि दल बीच में
वह सुभद्रा से बना पुत्र था।
पर तुझें मालूम
न होगा,
जान कर भी जानता,
तू न होगा।
स्वार्थ मे डूबा।
घमंड मे चूर तू
जान कैसे पायगा
मेरे सुकर्म तू।
तू न जाना
न जानेगा तू कभी।
तू मुझे
न पहचानेगा कभी।
पर मै बताती हूँ तुझें,
मै कौन हूँ?
पुरुष का पोरुष,
जिसने है रचा।
पुरुष का पोरुषत्व
जिसने है गढ़ा।
मै वही
मैं वही
नारी हूँ मैं।
इस जगत में
हर किसी पर
भारी हूँ मैं।
मै स्वरूपा हूँ
मै माया हूँ।
शक्ति हूँ
मै ही भक्ति हूँ।
राम को मैंने ही
पुरुषोत्तम किया।
कृष्ण को मैंने जग में
कृष्ण किया।
बुद्ध को बोद्धित्व
मैनें ही दिया।
मार्ग पर निर्वाण के
मैने ही चलाया।
ईसा को मसीहा
मैंने ही बनाया।
ब्रह्मा को मैने
विधाता था कहा
मै ही संकल्पित हो
बनाती हूँ तुझें।
सौभ्य रस मे
मै डूबाती हूँ तुझें।
हार कर जब टूटता है,
दे सहारा थामती
मै हूँ तुझे।
अरे ! पाषाण हृदयी
तू मुझे एक देह ही
बस मानता।
भोग की भोग्या बस
तू जानता।
देह तक तेरी नज़र
मुझसे मिली।
देह पाने को सभी,
चाले चली।
पर देह बस,
देह नही हूँ ।
न केवल शरीर मात्र हूँ।
जूए मे हारी हुई
थाती नही हूँ।
आत्मा हूँ,
मै पुरुष हूँ,
मै तेज हूँ वेग हूँ।
मै वार हूँ प्रेम हूँ।
वक्त पर काली तो
कभी भगवती हूँ।
मैं सीता हूँ
राधा हूँ
सुभद्रा हूँ।
तो कभी चण्डी,
कालरात्री हूँ।
तू पुरुष बस,
पुरुष ही रहा।
मै पुरुष भी हूँ।
मै नारी हूँ।
रचनाकार- हेमराज सिहं
कोटा राजस्थान।