प्रभु को भी कर्मशील व्यक्ति बहुत प्रिय है


यह मानव जीवन कर्म जीवन है। यह ना केवल स्वयं के कल्याण और उत्थान के लिए है अपितु और भी बहुत लोगों के जीवन का भी भला करने के लिए है। जिस प्रकार एक पिता उद्यमी पुत्र के प्रति विशेष प्रेम रखता है और उसकी प्रशंसा भी चहुँओर करता है। वैसे ही प्रभु को भी कर्मशील व्यक्ति बहुत प्रिय है।

कर्म करते-करते ज्ञान को अनुभव करो। कई लोग सोचते हैं कि संतोष माने कर्म ना करना, जो है सो ठीक है। संतोष रखने का अर्थ यह है कि जब मेंहनत करने पर किसी कारणवश हम सफल ना हों या कम सफल हों तब उस समय मानसिक विक्षोभ के ऊपर काबू किया जाए। चिंता, दुःख, निराशा, स्ट्रेस, और डिप्रेशन से बचने के लिए भगवान की इच्छा समझकर संतोष किया जाए। लेकिन स्मरण रखना प्रभु को अकर्मण्य बिलकुल भी प्रिय नहीं है।

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