बैकुंठ उस परम आत्मा का धाम हैं जहाँ पर पहुँचने की हमसब आत्माओं की कामना होती है


भगवान के हुकुम में रहे फिर सब जगह वैकुण्ठ ही है जो मनमानी करते हैं, दुखी रहते हैं, मरने पर नरक होता है कुछ ऐसा मान कर रहो हमारी मनोदशा के सन्दर्भ में कितनी महत्वपूर्ण बात महाराज जी यहाँ पर भक्तों को संभवतः समझा रहे हैं। विशेषकर वे जो की कठिन समय का सामना कर रहे हैं। 

वैसे तो वैकुण्ठ को प्रायः हम उस परम आत्मा के धाम के रूप में जानते हैं जहाँ पर पहुँचने की हम सब आत्माओं की कामना होती है, मोक्ष प्राप्ति की कामना होती है परन्तु यहाँ पर वैकुण्ठ का सन्दर्भ संभवतः कोई स्थान विशेष ना होकर के अपितु हमारे मन की अवस्था के होने की बात हो रही है।दुर्भाग्यवश ऐसा प्रायः देखा जाता है कि हम मनुष्य, मोह और माया अर्थात जो नहीं है उसके होने का जो है उसके ना होने का भ्रम में फँस कर कुछ ऐसे निर्णय ले लेते हैं जो हमारे लिए अच्छे नहीं होते और फिर इन कर्मों का फल हमें पीड़ा देता है या हममें से कुछ लोग अपना प्रारब्ध काटते हुए अधीर हो जाते हैं और उनमें से कुछ "मैं ही क्यों" की स्थिति (जैसे हम कुछ दिन पहले चर्चा कर रहे थे की ) में होते हुए क्रोध-लोभ के वशीभूत होकर अक्सर कुछ गलत कर्म कर जाते हैं…. और फिर उनका फल भोगते हैं (अधिकांश वर्तमान जन्म में ही या मृत्यु पश्चात् अगले जन्म में) -अधिक पीड़ा के साथ ….. इस स्तिथि को नर्क की दशा की संज्ञा भी दी जा सकती है।

ऐसी स्थिति में अपने आप को डालने से हमें बचाना है। यदि उनके लिए हमारे भाव सच्चे हैं तो ये मान के चलें की जो कुछ भी हमारे जीवन में हो रहा है वो हमारे आराध्य और महाराज जी की मर्ज़ी से है (उनके हुकुम से है) और इसलिए इस क्षण या इन परिस्थितियों में हमारी वर्तमान अवस्था ही हमारे लिए सबसे ठीक है या संतोषजनक है- यह वैकुण्ठ में होने के समान है, जितना हम महाराज जी के बारे में सोचते हैं उससे कहीं अधिक वो हमारे बारे में सोचते हैं संघर्ष के समय में उस स्थिति से निकलने के लिए हमें अपनी ओर से निरंतर प्रयत्न करते रहना है लेकिन उन कर्मों के फल की कामना अपनी इच्छा अनुसार होने की अवस्था से भी अपने आप को किसी तरह बचाना है क्योंकि जब अपेक्षा और आकांक्षाओं के अनुसार हमें अपने कर्मों का फल नहीं मिलता तो फिर पीड़ा होती है।

ऐसे स्थिति में कितना अच्छा हो की हम महाराज जी से ये प्रार्थना करें की प्रभु हमने अपना कर्त्तव्य, अपना धर्म अर्थात कर्म कर दिया -अब इनका फल आप पर निर्भर है (संभवतः ऐसा कई बार करना पड़े) इसके पश्चात् बस महाराज जी पर विश्वास रखना है पूर्ण समर्पण महाराज जी हमारी रक्षा अवश्य करेंगे सही समय पर -जो हमारे लिए सबसे ठीक भी होगा। इसका आभास हमें बाद में कभी कभी हो भी जाता है।

महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।

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