सेवा करना जीव का स्वभाव है

दो वस्तु जीवन मे होती है एक निज स्वाभाव और दूसरा औरों का प्रभाव अधिकतर हम सब अपने स्वाभाव में नहीं औरों के प्रभाव में जीते हैं। हमे जो चाहिए वो पाने के लिए यत्न करें वो हुआ स्वभाव और औरो को पाया हुआ देखकर वो पाने का हम भी यत्न करें ये हुआ प्रभाव जब तक कुछ पाना बाकी हो तो अपने मूल स्वाभाव का परिचय नहीं होता क्योंकि हम अपनी कामनाओ के प्रभाव में जीते हैं।

जब जीवन मे कुछ भी पाना बाकी न रहा हो तो जो करने का मन हो वो हमारा मूल स्वाभाव है सेवा करना जीव का स्वभाव है जीवन मे कुछ पाना बाकी न रहा हो तब हमारे मूल स्वभाव की वृत्ति जागती हैं।

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