पुण्य कमाने से हमारी भक्ति में शक्ति होगी

 
जो कहते हैं- हम, हमार नात-भाई, परिवार ठीक रहे, दुनिया मरे हमें क्या- उनका भला नहीं होता। जो दूसरे का भला करता है, उसका भला होता है। हममें से बहुत से लोगों को जीवन में सुख और विशेषकर शांति की तलाश होती है और इसके लिए वे तरह -तरह के प्रयत्न करते हैं, पूजा -पाठ, भजन -कीर्तन, सत्संग-कथा इत्यादि भी करते हैं।
 
महाराज जी ऐसे लोगों का मार्गदर्शन करते हुए यहाँ पर कहते हैं की उन्हें ऐसे किसी दोहरे मापदंड से बचना होगा जिससे उनकी अंदर ऐसी भावना आती हो की हमारे साथ, हमारे अपनों के साथ तो सब अच्छा हो, लेकिन दूसरों के साथ बुरा हो या दूसरों के साथ कुछ भी हो उससे हमसे कोई मतलब नहीं है… महाराज जी कहते हैं कि जो लोग दूसरों के प्रति ऐसी उदासीनता रखते हैं उनका कल्याण नहीं होता।
 
अपनों के लिए करना अच्छी बात है, करना भी चाहिए लेकिन दूसरों की उपेक्षा अनुचित है विशेषकर तब, जब हमारे समीप कोई परेशानी में हो, दुःख में हो, जरूरमंद हो और हम उसकी मदद करने में सक्षम होते हुए भी ऐसा नहीं करते हैं। फिर हम चाहे जितना पूजा-पाठ, कीर्तन -भजन, कथा -सत्संग करते हों - वो सर्वशक्तिशाली परम आत्मा हमें इसका लाभ नहीं देगा क्योंकि हो सकता उसने हमें ही निमित्त बनाया हो उस ज़रूरतमंद की मदद करने के लिए….. ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्म ना करना हमें उस परम आत्मा की कृपा का पात्र नहीं बनने देगा। और जैसा महाराज जी कहते हैं ऐसे में हमारा का भला नहीं होगा।
 
महाराज जी आगे समझाते की परमात्मा के प्रिय होने के लिए, स्वयं के कल्याण के लिए -अपने सामर्थ के अनुसार हमें हर ज़रूरतमंद की मदद करनी होगी, विशेषकर ऐसे वंचित जिन्हे हम ठीक से नहीं जानते या जो हमें अकस्मात मिल जाये या जो हमारे उपकार का बदला भी न चुका सकें -बिना किसी अपेक्षा के और जाति और धर्म से ऊपर उठकर।
 
इस तरह से पुण्य कमाने से हमारी भक्ति में शक्ति होगी, वो परम आत्मा हमारा प्रारब्ध काटने में हमारी मदद करेगा, महाराज जी का आशीर्वाद भी मिलेगा और जैसा महाराज जी कहते हैं हमारा भला भी होगा। और भला हम भक्तों को क्या चाहिए ??
महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।

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