बाॅंस आधारित शिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए पांच जनपदों में सामान्य सुविधा केन्द्रों की, की जायेगी स्थापना


लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री दारा सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में बाॅंस आधारित शिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए सहारनपुर, बरेली, झाॅंसी, मीरजापुर तथा गोरखपुर में सामान्य सुविधा केन्द्रों (सीएफसी) की स्थापना कराई जा रही है। राष्ट्रीय बाॅंस मिशन योजना के तहत स्थापित किये जाने वाले इन सीएफसी के माध्यम से किसानों, बाॅस शिल्पकारों तथा उद्यमियों को आवश्यक प्रशिक्षण दिये जायेंगे।

उन्होंने निर्देश दिये कि अधिक से अधिक किसानों बाॅंस आधारित खेती तथा उसकी व्यापारिक गतिविधयों से अवगत कराया जाय और किसानों को बाॅंस के खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाय। चौहान आज यहां कुकरैल स्थित मौल ऑडीटोरियम में उत्तर प्रदेश में बाॅंस क्षेत्र का विकास विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सीएफसी में क्राॅस कट, बाहरा गाॅंठ हटाना, रेडियल स्प्लिटर, स्लाइसर, सिलवरिंग, स्टिक मेकिंग और स्टिक साइजिंग आदि विभिन्न प्रकार की मशीनों की स्थापना होगी। ये केन्द्र बाॅंस कारीगरों के समूहों, स्वयं सहायता समूहों, कृषक उत्पादन संगठनों तथा वन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किये जायेंगे।



उन्होंने निर्देश दिए कि सीएफसी से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ा जाय। विशेष अभियान चलाकर किसानों को इस योजना की जानकारी दी जाय। बैम्बो मिशन के तहत किस प्रकार की सुविधा मिल रही है, इससे किसानों को भली-भांति अवगत भी कराया जाय। चौहान ने कहा कि कहा कि किसानों एवं ग्रामीणों द्वारा निर्मित बाॅंस उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने के लिए सहारनपुर, बरेली, मीरजापुर, सोनभद्र तथा ओबरा में बाॅंस बाजार (बैम्बू मार्केट) स्थापित कराये जा रहे हैं। यह बाजार उत्पादों की बिक्री और बाजार की प्रवृति के अनुरूप पूरे वर्ष मंच प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगे। इसके अतिरिक्त बाॅंस के उपचार हेतु बरेली एवं चित्रकूट बाॅंस उपचार संयत्र की स्थापना कराई जा रही है। वहीं, बरेली में कार्बोनाइजेशन संयत्र भी स्थापित कराया जा रहा है।

इन प्रयासों से किसानों की आय में वृद्धि होगी और चीनी उद्योग को भी लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि बैम्बो क्षेत्र के विकास में यह कार्यशाला मील का पत्थर साबित होगी। प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील पाण्डेय ने कहा कि बाॅंस नकदी फसल है। बाॅंस की कई प्रजातियां है, जो 60-70 मिमी0 एक घण्टे में बढ़ जाती हैं। साथ ही बाॅंस 35 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड भी सोखता है। उन्होंने कहा कि बास के वृक्षों का वेदों में भी वर्णन किया गया है। इसकी महत्ता हमारे जीवन से जुड़ी है। बाॅंस ऐसा वृक्ष है, जिसके हर भाग का उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसानों को बाॅंस की खेती के लिए सब्सिडी दिये जाने का प्राविधिान है। किसान अपनी भूमि पर हरा सोना उगाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बना सकते है। बाॅंस क्षेत्र के विकास हेतु क्लस्टर आधारित विकास कार्यक्रम चलाये जायेंगे।


कारीगरों का समूह बनाकर हस्तकला, शिल्पकला में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी। मिशन निदेशक, राष्ट्रीय बाॅंस मिशन, डा0 के0 इलन्गो ने कहा कि बाॅंस उत्पादकों की आय में वृद्धि, विपणन तथा कच्चेमाल की उपलब्धता को सुनिचित करने के लिए वर्ष 2019-20 में राष्ट्रीय बाॅंस मिशन की स्थापना हुई है। यह योजना बुंदेलखण्ड और विन्ध्याचल सहित 32 जनपदों में क्रियान्वित की जा रही है। योजनान्तर्गत  बैम्बूसा बाल्कोआ, बैम्बूसा न्यूटन्स, बैम्बूसा बैम्बोस, डैन्ड्रोक्लेमस हैमिल्टोनी और डैन्ड्रोक्लेमस जाइजेन्टियस प्रजातियों के पौधों को उगाने वृक्षारोपण का कार्य कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बाॅंस क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए नई बाॅंस किस्मों को विकसित किया जा रहा है।

अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया गया है। जगह-जगह हाई-टेक नर्सरी स्थापित कराई जा रही है। पौधों में कीट एवं बीमार प्रबंधन पर कार्य किया जा रहा है। बाॅंस हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। कार्यशाला में बाॅंस एवं बेंत विकास संस्थान, अगरतल्ला/नई दिल्ली, भारतीय काष्ट विज्ञान एवं तकनीक संस्थान बंग्लुरू, भारतीय प्लाईउड उद्योग अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान बंग्लुरू, भारतीय बाॅंस संसाधन एवं तकनीक केन्द्र बहराइच/नई दिल्ली सहित उद्यमी, स्वयंसेवा संस्थाएं, कृषक उत्पाद संगठन, बाॅंस शिल्पकार, किसान, विविध वरिष्ठ अधिकारी तथा वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। इनके अतिरिक्त प्रदेश के समस्त डी0एफ0ओ0 कार्यशालय से वर्चुअल जुड़े रहे।

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