स्त्री जब सकारात्मक ऊर्जा के साथ कार्य करे तो वह हर ऊंचाई छू सकती है


ये लेफ्टिनेंट जनरल माधुरी कनिटकर हैं। भारत की मात्र तीसरी महिला जो इस उच्च पद तक पहुँची हैं। इनके पति राजीव कानिटकर भी इस पद पर रह चुके हैं, और इस तरह यह पहला मौका है जब पति-पत्नी दोनों लेफ्टिनेंट जनरल के पद तक पहुँचे हों।

स्त्री जब सकारात्मक ऊर्जा के साथ कार्य करे और ठान ले तो वह हर ऊंचाई छू सकती है। उसके लिए न दुर्गा होना कठिन है, न लक्ष्मी होना, न सरस्वती होना। उसके अंदर ही यह तीनों शक्तियां निवास करती हैं। वह जब चाहे तब कल्पना चावला हो सकती है, बछेन्द्री पाल हो सकती है, या सुनीता विलियम्स हो सकती है। यूँ ही नहीं विश्व की प्रत्येक प्राचीन सभ्यता में मातृ देवी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था और है। जानते हैं! कोई भी समाज किसी व्यक्ति को केवल इसलिए सम्मान नहीं दे सकता कि वह पुरुष है या स्त्री है। किसी के पुरुष या स्त्री होने में उसकी कोई भूमिका नहीं होती, यह अस्तित्व तो उसे ईश्वर से उपहार स्वरूप मिलता है।

व्यक्ति को सम्माम मिलता है तब, जब वह अपने कार्यक्षेत्र में परिश्रम और योग्यता से नई ऊंचाई प्राप्त करे। एक सफल पुरूष वह है जो अन्य पुरुषों को उन्नति का मार्ग दिखाए, एक आदर्श स्त्री वह है जो अन्य स्त्रियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। अन्यथा होने को तो पृथ्वी पर अरबों पुरुष और स्त्रियां हैं...भारत ने महाराणा प्रताप को पूजा है तो महारानी पद्मावती को भी पूजा है। भारत यदि शिवाजी पर गर्व करता है तो महारानी लक्ष्मीबाई पर भी श्रद्धा रखता है। यहाँ यदि रामधारी सिंह दिनकर को सम्मान मिलता है तो सुभद्रा कुमारी चौहान को भी...समय के समक्ष व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके पुरुष-स्त्री होने से नहीं, बल्कि उसके शौर्य से तय होती है।

एक पुरुष चाहे तो वह चन्द्रशेखर आजाद, धीरूभाई अंबानी या सचिन तेंदुलकर हो सकता है, और चाहे तो आमिर अजमल कसाब भी हो सकता है। वैसे ही कोई स्त्री यदि सकारात्मक रहे तो वह जनरल माधुरी कानिटकर हो सकती है, और नकारात्मक रहे तो कोई असभ्य... मनुष्य के विकास की दिशा क्या होगी, यह केवल और केवल उसकी सोच पर निर्भर करता है। समाज में दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जो पूरी लगन और समर्पण से काम करते हुए अपने क्षेत्र में मिल का पत्थर बनते हैं, और दूसरे वे जो निकम्मेपन की परिभाषा बने हमेशा दूसरों की आलोचना करते हैं। अपने निकम्मेपन को 'एक्टिविज्म' का नाम देने वाली इस दूसरी श्रेणी के लोगों की जिद्द है कि वे समाज से सम्मान प्राप्त करेंगे पर वे नहीं जानते कि चर्चा पाना दूसरी बात है और सम्मान पाना दूसरी बात।

नकारात्मक कार्यों से चर्चा मिलती है और सकारात्मक कार्यों से सम्मान! इन चर्चा चक्रवर्तियों को भारत ही क्या कहीं सम्मान नहीं मिलेगा। जिस समय नारीवाद के स्वघोषित योद्धा कमोड पर बैठ कर खिंचवाई गयी फूहड़ तस्वीर को प्रगतिशीलता बता कर स्वयं की पीठ थपथपा रहे हों, उस समय माधुरी कानिटकर को नमन करने में मेरे अंदर का पुरुष गर्व का अनुभव कर रहा है। यही हमारा नारीवाद है।


सर्वेश तिवारी श्रीमुख

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