सेवा धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं:
सेवा धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है। बिना बुलाए जाकर सेवा कर आओ, जितनी शक्ति हो … बस भजन हो गया। बुलाकर जाने से सब कट जाता है। निष्छल और निस्वार्थ भाव से ज़रूरतमंदों की स्वेच्छापूर्वक सेवा/ मदद महाराज जी के सच्चे भक्तों से अपेक्षित है, जिससे जो और जितना बन पड़े, लेकिन उस/उन ज़रूरतमंद की जाति और धर्म के बारे में बिना विचार किये हुए !!
हमारी ये एक पहल, हमारे भजन, सत्संग और पूजा इत्यादि के बराबर होती है। ऐसा हमारे महाराज जी ने हमें समझाया है। यदि हममें सेवा भाव नहीं है तो हमारे भजन, सत्संग, पूजा- पाठ, भक्ति का हमें लाभ नहीं मिलने वाला है। ऐसी सहायता का किसी से भी बखान नहीं करना चाहिए। इससे अभिमान आ जाता है और पुण्य भी नहीं मिलता। बल्कि किसी की सहायता करते समय हमें परमात्मा के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए की उसने हमें माध्यम बनाया - हमारे जैसी किसी दूसरी आत्मा की मदद करने के लिए, और इस कर्म से हमें पुण्य अर्जित करने का अवसर दिया। जिसका सुखद फल भी हमें ही मिलेगा।
महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।