चोट नहीं लगती तब तक भजन नहीं होता


महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं कि

चोट नहीं लगती तब तक भजन नहीं होता। हमारे बुरे कर्मों के फलस्वरूप हम सभी के जीवन में संघर्ष का समय आता है, चोट लगती है इसकी तीव्रता, अवधि और कितनी बार होना है ये तो परमात्मा ही तय करते हैं ऐसी परिस्थितियों में कभी कभी ये दिखने लगता है कि ईश्वर सर्वशक्तिशाली है और उसके सामने हम कुछ नहीं है। हमें चोट लगने की ये प्रक्रिया, जो हममें से बहुत से लोगों के लिए कष्टदायक होती है, अंततः हम आत्माओं का इसमें हित ही निहित होता है। जिन्हें ऐसी बातें समझ में आने लगती है, उनका मन भजन में, भक्ति में भी लगने लगता है और महाराज जी के सच्चे भक्तों के सन्दर्भ में, ये समय महाराज जी के हुकुम से भी होता है।
 
अर्थात जो भक्त महाराज जी के उपदेशों पर चलने की ईमानदारी से कोशिश करते हैं निरंतर, जिन भक्तों को महाराज जी में सच्ची आस्था है, उनका संरक्षण महाराज जी स्वयं करते हैं- आज भी। यदि हम इस बात तो बार -बार याद दिलाते रहें तब, जब हमें चोट लगती है, जब हम जीवन में संघर्ष कर रहे होते हैं, तो निश्चित ही महाराज जी के लिए हमारे भाव, हमें संकट का सामना करने की शक्ति देंगे अंततः इस समय को भी बीतना तो है ही और कभी कभी वो सर्वशक्तिशाली ईश्वर हमें मुसीबत/ चोट/ संघर्ष का समय इसलिए भी देता है क्योंकि वो हमारे अंदर भक्ति की भावना, करुणा, सेवाधर्म इत्यादि जगाने और उन पर चलने का अवसर , प्रेरणा हमें देना चाहता है।
 
ऐसे में यदि हमारे अंदर इच्छाशक्ति हो तो महाराज जी के मार्गदर्शन से, हमें अपने जीवन का उद्देश्य समझ में आना संभव हो जाता है हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने का अवसर महाराज जी देते हैं जीवन में शांति तदुपरांत निश्चित है। दुःख में तो हम सभी को भगवान की, महाराज जी याद आती है पर महाराज जी ने हमें सुख में भी भक्ति करने का महत्त्व कई बार समझाया है सुख में भी हमें ईश्वर को याद करते रहना हैउनका भजन, उनकी भक्ति करते रहना है ऐसी भक्ति जिसमें प्रदर्शन की आवश्यकता ना पड़े। महाराज जी और उस सर्वव्यापी ईश्वर के ऊपर ऐसी भक्ति का कोई भी असर नहीं होता जहाँ विभिन्न प्रकार से हम दूसरों को दिखाने के लिए भक्ति का प्रदर्शन करते है।
 
सच्ची भक्ति के लिए केवल भक्त के भाव की आवश्यकता होती है, ईश्वर के लिए, महाराज जी के लिए महाराज जी ने हमें सिखाया है कि सुख के समय हमें ईश्वर का कृतज्ञ रहना है कि उसने हमारे पूर्व में किये गए पुण्य, अच्छे कर्मों का फल इस तरह दिया है विनम्र रहना है-सभी के साथ जो भक्त सुख के समय भी ईश्वर को याद करते हैं, महाराज जी में आस्था रखते हैं, उस भक्त के दुःख के समय महाराज जी उसका विशेष ध्यान रखते हैं और भगवान तो किसी का, कभी भी बुरा चाहते ही नहीं महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।

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