निस्वार्थ भाव से कार्य करना ईश्वर भक्ति से कम नहीं

 
ईश्वर भक्ति में यदि भावना और प्रेम का समावेश हो जाय तो लोकाचार के नियम भंग होने पर भी कोई अपराध नहीं बनता है। श्रीराम चरित मानस के दो प्रसंग इसके उदाहरण हैं। प्रथम केवट का प्रसंग वह भगवान को अपनी नौका से गंगा पार कराने को मना कर देता है। लोक नियमों के अनुसार यह अपराध है परन्तु केवट की भावना में कोई दोष न होने के कारण वह अपनी शर्तों पर श्रीराम जी को गंगा पार कराने की बात करता है।

दूसरा उदाहरण शबरी का है, अतिथि वह भी साक्षात ईश्वर को अपना जूंठा खिलाना एक अक्षम्य अपराध था परन्तु शबरी की भक्ति में भावना प्रधान होने के कारण उसका यह कृत्य भक्ति की पराकाष्ठा मेंं बदल गया। देश हित में सोचना और निस्वार्थ भाव से कार्य करना किसी ईश्वर भक्ति से कम नहीं कहा जा सकता है। गलतियां भी हो सकती हैं परंतु उन्हें अपराध की श्रेणी में नहीं आंका जा सकता है।

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