जीवन एक वीणा की तरह है जिसके तारों का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए


इस दुनिया में सदैव ही दो तरह की विचारधारा के लोग जीते हैं एक इस दुनिया को निःसार समझकर इससे दूर और दूर ही भागते हैं दूसरी विचारधारा वाले लोग इस दुनिया से मोहवश ऐसे चिपटे रहते हैं कि कहीं यह छूट ना जाए कुछ इसे बुरा कहते हैं तो कुछ इसे बूरा (मीठा) कहते हैं।

जीवन एक वीणा की तरह है वीणा के तारों को ढीला छोड़ेगो तो झंकार ना निकलेगी और ज्यादा खींच दोगे तो वो टूट जायेंगे मध्यम मार्ग श्रेष्ठ है, ना ज्यादा ढीला और ना ज्यादा खिचाव। अपनी जीवन रूपी वीणा से सुख-आनंद की मधुर झंकार निकले इसलिए अपने इन्द्रिय रुपी तारों को ना इतना ढीला रखो कि वो निरंकुश और अर्थहीन हो जाएँ और ना इतना ज्यादा कसो कि वो टूटकर आनंद का अर्थ ही खो बैठें जिसे मध्यम मार्ग में जीना आ गया वो सच में आनंद को उपलब्ध हो जाता है।

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