हरि से लगे रहो मेरे भाई, बिगड़ी बनत-बनत बन जाई


हरि से लगे रहो मेरे भाई, बिगड़ी बनत-बनत बन जाई।

महाराज जी सम्भवतः यहाँ पर कबीर दास जी के माध्यम से हम भक्तों को समझा रहे हैं की ईश्वर (या जिस भी देवी -देवता को हम मानते हों) की भक्ति में धैर्य के साथ मन लगाने में हमारा कल्याण है। हमारे कर्मों का फल तो हमें मिलना ही मिलना है-फिर चाहे वो जिस परिस्थितियों में किये गए हों।

बुरे और अच्छे समय दोनों में ईश्वर को याद करने से, सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने से संभव है कि जब हम अपने बुरे कर्मों का फल भुगत रहे हो और विचलित हों, पीड़ा में भी हों, तो संभवतः इस तरह के समय के लिए महाराज जी हमें समझा रहे हैं की सच्चे भाव से ईश्वर भक्ति किये जाने पर उस पीड़ा की तीव्रता कम हो सकती है।

वो परम आत्मा ऐसे प्रारब्ध काटते समय हमारे साथ हो। ऐसे कठिन समय का सामना करने के लिए संभवतः हमारे अंदर असाधारण धैर्य पैदा कर दे और यदि बुरे कर्म करने के बाद में हममें पश्चाताप की भावना जागी होगी और हमने भूल सुधारने का प्रयत्न भी किया होगा तो संभव है वो परम-आत्मा हमें क्षमा ही कर दे क्योंकि ये तो उसी के लिए संभव है क्योंकि उसके लिए तो कुछ भी संभव है।

वैसे कितनी अच्छा हो की हम अपने विवेक का उपयोग करते हुए बुरे कर्मों से बचे, दूसरों को स्वार्थवश अपने शरीर के किसी भी अंग से, विशेषकर वाणी से, दुःख ना पहुंचाएं, परमार्थ और परस्वार्थ पर चलने की पूरी कोशिश करें तो ऐसे कर्मों का फल तो अच्छा ही होगा।


महाराज जी सबका भला करें।

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