1857 का विद्रोह और कांग्रेस की स्थापना
भारतीय संविधान/वयस्क मताधिकार आधारित
प्रतिनिधित्व प्रणाली में राजनीतिक दलों का उल्लेख तक नहीं किया गया, ऐसा
क्यों किया गया। जबकि राजनीतिक दलों को ही देश चलाना था ? इस
प्रश्न के उत्तर के लिए काफी अध्धययन और शोध किया लेकिन जवाब नहीं मिला।
आज बैठा इसी बिंदु पर चिंतन कर रहा था कि इसका उत्तर मेरे मस्तिष्क में
आया, उत्तर सही है या गलत मुझे नहीं मालूम, लेकिन जो उत्तर मझे मिला उसे
मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं।
1857
के विद्रोह और 1885 में कांग्रेस की स्थापना उपनिवेशवाद के लिए बड़ी घटना
थी। 1857 के बाद ब्रिटिश सरकार ने इसके कारणों का विस्तृत अध्ययन करवाया।
उसके पश्चात कई कानून बने। मेरे कहने का आशय यह है कि ब्रिटेन से लेकर भारत
तक इस घटना के प्रभाव व्यापक स्तर और गहराई से महसूस किए गए। निष्कर्ष यह
निकला कि एक मंच ऐसा बनाया जाए जिसके माध्यम से लोगों को समझा जा सके। उसके
बाद 1885 में कांग्रेस पार्टी बनी। मैं इसकी स्थापना के विवादों की चर्चा
किए बगैर सीधे यह बताना चाहता हूँ कि इसकी स्थापना से एक महत्वपूर्ण
परिवर्तन यह आया कि लोगों की मांग और असन्तोष की जानकारी ब्रिटिश सरकार को
मिल जाती थी जिससे उनको नीतियाँ बनाने मे मदद मिलती, कांग्रेस भारत के
लोगों की आवाज़ बन गयी क्योंकि उसमें हर प्रान्त के व्यक्ति जुड़ा था।
मेरा
कहने का तातपर्य यह नहीं कि इसके बाद संघर्ष बन्द हो गया, संघर्ष हुआ लेकिन
1857 जैसा विद्रोह दुबारा नहीँ हो सका। धीरे-धीरे सदन में प्रतिनिधित्व की मांग उठी विभिन्न विषयों को लेकर जनांदोलन
और संघर्ष हुए और अंततः 1947 में देश आजाद हुआ। संविधान निर्मात्री सभा ही
सरकार बन गयी और 1952 में प्रथम आम चुनाव हुए और चुनी हुई सरकार बनी। इसके
पहले ही गांधी ने कहा था कि अब कांग्रेस का उद्देश्य पूर्ण हो चुका है
इसलिए इसे समाप्त कर देना चाहिये, स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी है, इसका
मकसद समाप्त हो चुका है। सभी लोग अपने-अपने क्षेत्र में जाकर कार्य करें और
चुनकर आएं। जिसे संविधान
में समाप्त कर दिया गया। क्योंकि उसमें राजनीतिक दल को जगह नहीं दी गयी।
ऐसा इसलिए किया गया क्योकि अब क्षेत्रीय इच्छा, आकांक्षा और आवश्यकता की
जानकारी सरकार तक प्रतिनिधियों के माध्यम से पहुंचनी थी।
संविधान की
प्रस्तावना, दल विहीन संसद, विपक्ष विहीन सदन, प्रतिनिधि की योग्यता, वयस्क
नागरिक को ही चुनाव में भाग लेने की अनुमति, दलों के चुनाव में भाग लेने
का कोई उल्लेख न होना, दलों द्वारा बहुमत का दावा, परेड आदि से साबित होता
है कि देश में संविधान नहीं धोखा लागू हुआ। जिसका
परिणाम हुआ कि पूरा तंत्र केवल पार्टियों के लिए कार्य कर रहा है
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कैबिनेट, पुलिस और प्रशासन। जल्द ही इस विषय का निस्तारण कराया जाएगा कि संविधान और व्यवस्था हमारी है या पार्टी की।