अच्छे समय की तरह कठिन समय भी हम सबके जीवन में आता है

 
जेहि बिरिया जेहि बैसवा, जेहि बिरिया जेहि बैस। तुलसी मन धीरज धरो, हुइहै ता दिन-तैस॥
 
सियावर रामचन्द्र की जै। महाराज जी इस दोहे के माध्यम से ऐसे भक्तों को साहस दे रहे हैं, हिम्मत बंधा रहे हैं जो वर्तमान में किसी प्रकार की परेशानी, संघर्ष का सामना कर रहे हैं। वे आगे कहते हैं “यही साइत हम जानते हैं और मानते हैं… और (फिर भी कभी-कभी) नहीं जानते। इसलिए बेकार है चिन्ता करना, सोच करना, दिमाग खराब करना।“ अच्छे समय की तरह, कठिन समय भी हम सबके जीवन में आता ही आता है। किसी को कम -किसी को अधिक। किसी को जीवन में कुछ ही बार और किसी को कई बार…. जैसे हमको महाराज जी ने समझाया है ये सबके अपने -अपने प्रारब्ध, कर्मों के फल पर निर्भर करता है।
 
ऐसे समय में हम सब आत्माएं, उस परम -आत्मा से/ महाराज जी से गुहार लगाते हैं -मदद की। और वे हमारी मदद भी करते हैं परन्तु कभी -कभी वैसे नहीं जैसे हमारी इच्छा होती है। क्योंकि हमें तो तुरंत मुसीबतों से निजाद चाहिए होता है....हम अधीर भी हो जाते हैं और चिंता ग्रसित होकर, गलत -सही कर्म करके अपने आप को और कभी -कभी अपनों को भी कष्ट देते हैं। इससे कोई समाधान भी नहीं निकलता है। जिन भक्तों को महाराज जी में आस्था है, विश्वास है, वे कठिन समय में महाराज जी द्वारा समझाए गए इस दोहे (जेहि बिरिया जेहि बैसवा, जेहि बिरिया जेहि बैस। तुलसी मन धीरज धरो हुइहै ता दिन-तैस॥) सियावर रामचन्द्र की जै) को नियमित रूप से यदि कहते हैं तो उन्हें ऐसे संघर्ष के समय का सामना करने की शक्ति मिलेगी, धैर्य मिलेगा।
 
महाराज जी की कृपा उस मुसीबत की तीव्रता को भी कम करती है। महाराज जी को सब ज्ञात है। वे सब देख रहे हैं - आश्वस्वत रहें। बस हमें उस मुसीबत से निकलने के लिए अपना धर्म निभाना होगा- कर्म करते रहना होगा। और महाराज जी के आशीर्वाद से हम कठिन समय से बाहर आ जाएंगे - परन्तु उस समय जब परम आत्मा ने तय किया होगा। ये समय हमारे सर्वार्धिक हित में भी होता है। महाराज जी द्वारा भक्तों को बताया गया ये एक और 
दोहा:
हुई है वही जो राम रचि राखा। को करि तरक बढ़ावहि साखा॥
 
भावार्थ:- जो कुछ राम ने रच रखा है -वही होगा !! तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। हम लोग कभी -कभी (प्रायः परेशानी की अवस्था में), अपनी बुद्धि से तर्क करने में लग जाते हैं जैसे कि हमारा काम कब होगा, कैसे होगा क्यों होगा इत्यादि। इस दोहे के निमित्त संभवतः यहाँ पर महाराज जी हमें समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि ये सब तर्क करने से समय की बरबादी और निराशा के अतिरिक्त अधिक कुछ नहीं मिलता है। क्योंकि हमारी बुद्धि की समझ, उसका दायरा, कार्य क्षेत्र तो केवल हमारे अतीत और वर्तमान की परिस्थितियों तक ही सीमित होता है, भविष्य का हमें कुछ भी पता नहीं होता है…..
 
इसलिए हमारा हित इसी में है की हम ये मान के चले की जो भी हमारे साथ हो रहा है वो ईश्वर की मर्ज़ी से हो रहा है क्योंकि उसे तो हमारा अतीत (जैसे हमने कर्म किये हैं), वर्तमान और भविष्य की परिस्थितियां - सब ज्ञात है। क्योंकि वो तो सर्वज्ञ है। और वो किसी का बुरा नहीं चाहता है । वो ईश्वर, वो परम आत्मा तो सर्वशक्तिमान है। जिसने भी इस धरती पर जब भी जन्म लिया है उसे अपने प्रारब्ध, कर्मों के फल तो काटने ही पड़ते हैं। हाँ ये अवश्य है कि हम महाराज के भक्तों का प्रारब्ध काटते समय वे हमारे साथ होते हैं- अर्थात प्रारब्ध काटते समय महाराज जी हमारे आस -पास ऐसी परिस्थितियां बना देते हैं की प्रारब्ध सहने योग्य हो जाते हैं।
 
संक्षेप में कठिन समय में/ प्रारब्ध काटते समय हमें महाराज जी की अनुभूति वैसे ही होगी जैसे हमारे भाव हैं उनके लिए। इसलिए महाराज जी के सच्चे भक्तों का अंततः अहित तो हो ही नहीं सकता। ये कठिन समय हमारे लिए कोई सज़ा या दंड पीड़ा या प्रताड़ना नहीं है, वो आदेश है उस परमेश्वर का जो सही और सच्चे मार्ग (जैसे की हमारे महाराज जी के मुख्य उपदेश हैं) -पर चलने के लिए कहता है। क्योंकि यही मार्ग उस ईश्वर का मार्ग है जो हमारे जीवन को उन्नति की और लेकर जाता है।
 
 
महाराज जी सबका भला करें।

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