महापुरुषों का ना केवल पूजन करना चाहिए अपितु उनसे प्रेरणा भी लेनी चाहिए

महापुरुषों का केवल पूजन नहीं अपितु उनसे प्रेरणा भी ली जानी चाहिए क्योंकि वास्तविकता में महापुरुषों का जीवन वंदना के लिए नहीं कुछ बनने के लिए प्रेरणा होता है। जबसे समाज ने महापुरुषों से पवित्र, मर्यादित, अनुशासित और शुचितापूर्ण जीवन की प्रेरणा लेने की बजाय उन्हें पूजना प्रारंभ कर दिया तबसे पुजारी तो कई बन गये पर कोई पूज्य ना बन सका जिसके संग से हमारा मोह भंग हो जाए और कृष्ण प्रेम का रंग चढ़ जाए, वही तो संत है।

महापुरुषों के चरण नहीं उनका आचरण पकड़ो ताकि हमारा आचरण उच्च बन सके देहालय शिवालय बन सके मनुष्यता के गुण हममें आ सकें वक्तव्य पकड़ना चाहिए वक्ता नहीं, नहीं तो व्यक्ति पूजा शुरू हो जाएगी आसक्ति गुणों को ग्रहण करने में हो ना कि गुणवान व्यक्ति में ही आसक्ति हो जाए।

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