हम सभी को अपने कर्मों का फल अपने प्रारब्ध के अनुसार ही मिलता है


सबके दुख से दुखी, सबके सुख से सुखी तब भगवान खुश रहते हैं ऐसा काम करो, भगवान खुश रहें आशीर्वाद हो गया। यहाँ पर महाराज जी हमें ईश्वर को प्रसन्न करने का एक और मार्ग दिखा रहे हैं, जो लगता तो सरल है…. लेकिन है नहीं….  क्योंकि दुर्भाग्यवश हममें से बहुत से लोग किसी ना किसी अहंकार से या ईर्ष्या इत्यादि से ग्रसित हैं परन्तु असंभव भी नहीं है।

महाराज जी कहते हैं की यदि हम ऐसा बन सकें तो फिर परम-पिता परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए और कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं है। यदि हमें सबके दुःख में दुखी और सबके सुख में सुखी होने की भावना को बनाना/दृढ़ करना है तो इसके लिए सबसे पहले प्रबल इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी है तदुपरांत महत्वपूर्ण चरण में हमें दूसरों से अपनी तुलना करने की भावना को नियंत्रण करने का प्रयास करना होगा।

ऐसे समय में महाराज जी की इस बात को अपने आप को नियमित रूप याद दिलाने से आसानी होगी कि हम सब अपने-अपने कर्मों के फल, अपने प्रारब्ध के अनुसार ही अपने -अपने भाग्य को पाते हैं ऐसे में हमारा दूसरों के साथ तुलना करने का तो कोई औचित्य ही नहीं है। ऐसे प्रयास हमें नियमित रूप से और धैर्यपूर्वक करना होगा जैसे -जैसे हमें अपने प्रयासों में सफलता मिलने लगेगी, वैसे -वैसे हम अपने अहंकार और ईर्ष्या पर नियंत्रण कर पाएंगे तदुपरांत क्रोध भी कम आएगा और फिर हम परमात्मा के कृपा पात्र बन पाएंगे।

वर्तमान में हमारा ऐसा प्रयास ही महाराज जी की सच्ची भक्ति भी है। हमारे जीवन में शांति आएगी। हम महाराज जी के भक्तों इससे अधिक उनसे क्या चाहिए भला!

महाराज जी सबका भला करें।

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