यह कर्मभूमि है सबको भोगना पड़ता है
महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं कि आप किसी देवता का आधा घन्टा जप या पाठ मन लगा कर करैं, तो सब काम ठीक हो जाय। यह दु:ख-सुख सबको भोगना पड़ता है राम जी ने त्रेतायुग में बाली को एक बाण से मारा था, फिर वह द्वापर में भील भया कृष्ण भगवान को एक बान से मारा जब करीब आया तो भगवान ने कहा यह बदला है, हमने तुमको एक बान से मारा था, बस शरीर छोड़ दिया भीष्म जी ने १०१ जन्म में पहले एक सांप को लाठी मारा, वह अधमरा हो गया उसे कांटों पर फेंक दिया वह ५२ दिनों तक फटक-फटक कर मरा।
वही भीष्म जी को ५२ दिन रन भूमि में सजा मिली, बानों से बेधे परे रहे तब शरीर छुटा राजा चित्रकेतु के भंडारा में १ कंडा में चारि सौ चींटी के अंडा जले वै सब रानी हुइर्ं राजा को ब्याही गईं राजा बीमार हुए सब मिलकर जहर देकर राजा को मारा यह कर्मभूमि है सब को भोगना पड़ता है। हममें से कुछ लोगों का जब बुरा समय आता है तो वे ईश्वर को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं, अपने मंदिर जाने का, प्रसाद चढ़ाने का, भजन-कीर्तन, कथा -सत्संग इत्यादि का हवाला देते हुए पूछते है की मेरे साथ ऐसा कैसे हो सकता है, जिन्हें पहुंचे हुए गुरु का सानिध्य प्राप्त है, बुरा समय पड़ते हैं उनमें से भी कुछ लोगों की प्रथम प्रतिक्रिया ये होती है की गुरु के रहते उन पर बुरा समय कैसे आ गया ?? कुछ तो अपने गुरु तक को दोषी ठहरा देते हैं। ऐसे में हम ये भूल जाते हैं कि जब हमने गुरु के मूल उपदेशों का ही पालन नहीं किया और बुरे कर्म करते रहे तो ऐसे कर्मों का फल तो आगे - पीछे भुगतना ही पड़ेगा।
अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को दुःख, पीड़ा देने से हमारा अच्छा तो हो ही नहीं सकता है अंततः इसका फल हमारे लिए बुरा ही होगा। वास्तव में परमात्मा ने कर्म और उसके फल की ऐसी आदर्श व्यवस्था कर रखी है कि जिसका विफल होना असंभव है वो परम आत्मा बहुत दयालू है परन्तु हमारे कर्म फल, प्रारब्ध में हस्तक्षेप नहीं करता है महाराज जी भी किसी के प्रारब्ध में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। वैसे कहीं ना कहीं, संसार में दुःख, बुराई, तकलीफ, बुरे लोगों की वजह से कम, बेहोश लोगों की वजह से ज़्यादा है बेहोश यानी जिन्हें पता ही नहीं की जो वो कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं। जाने अनजाने में हममें से कुछ लोग कई काम, कई कर्म केवल इसलिए कर रहे होते हैं क्योंकि उनकी जानकारी में या उनके आस -पास के लोग ऐसे कर्म कर रहे होते हैं ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि हर मनुष्य अपने हिस्से का कर्म करता है और उसी का फल भी पाता है इसलिए यदि दूसरा गलत कर रहा है तो हम वैसा ही क्यों करें। ये सोचना हमारे ही लिए लाभकारी है।
कर्म करना हमारा धर्म है अतीत में किये गए कर्मों का तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। उनका फल तो आगे -पीछे निश्चित ही भुगतना ही पड़ेगा परन्तु आगे हमारे जीवन में कठिनाइयां कम आएं तो उसके लिए हमें कर्म करते समय जाग्रत रहने की आवश्यकता है यहाँ पर जब जागो तब सवेरा हैं। हम महाराज जी के भक्तों को उस सर्वशक्तिशाली परम- आत्मा की कर्म और कर्म -फल की व्यवस्था को भली -भांति समझते हुए, अपने हित के लिए -अच्छे -बुरे कर्म करने के पहले, करते समय एक पल के लिए सोचने की कोशिश करनी होगी कि जो हम कर्म कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं। क्या इसका फल हमारे लिए कल्याणकारी होगा यदि महाराज जी के उपदेश अनुसार कल्याणकारी होगा तो करना चाहिए अथवा नहीं। वैसे कर्म करने के पहले, अपने आप से उसके औचित्य को जानने की कोशिश नियमित रूप से करना सरल नहीं होगा परन्तु अपने जीवन में सुख- शांति की प्राप्ति की कामना रखने वालों के लिए, ऐसे अभ्यास के लिए इच्छाशक्ति बनाना संभव होगा, नहीं तो ईश्वर की व्यवस्था के अनुसार, अपने -अपने कर्मों का फल/ प्रारब्ध तो सबको भोगना ही पड़ता है फिर चाहे वो देवी-देवता हों, दिव्य आत्मा हों या कोई साधारण मनुष्य हों।
जैसे हमारे महाराज जी ने इस उपदेश मैं श्रीराम, श्री कृष्ण, भीष्म पितामह और राजा चित्रकेतु का उदाहरण देकर हमें समझाया है। कितना अच्छा हो की हम महाराज जी के भक्त, उनके उपदेशों पर चलने का अधिक से अधिक प्रयास करें क्योंकि इन कर्मों का फल भी हमें ही मिलेगा और तदुपरांत हमारे जीवन में सुख समृद्धि और शांति होगी महाराज जी लिए भी अपनी भक्ति, अपनी आस्था प्रकट करने का ये बहुत अच्छा मार्ग है।
महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर रहे।