उ0प्र0 की अपनी होगी संस्कृति नीति
लखनऊ। मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर उत्कृष्टता के साथ स्थापित किये जाने एवं इसके प्रचार-प्रसार सहित शिक्षण-प्रशिक्षण, कौशल विकास व रोजगार से जोड़े जाने हेतु निरन्तर बल दिया जा रहा है।
उक्त के सम्बंध में
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संस्कृति, पर्यटन एवं धर्मार्थ कार्य विभाग
डॉ0 नीलकंठ तिवारी की अध्यक्षता में संस्कृति विभाग की समीक्षा बैठक
पर्यटन निदेशालय के सभागार में आहूत की गयी, जिसमें प्रदेश की संस्कृति
नीति के प्रख्यापन के सम्बंध में विचार-विमर्श किया गया तथा राज्यमंत्री
द्वारा संस्कृति नीति का प्रस्तुतिकरण देखा गया। समीक्षा बैठक में डॉ0
नीलकंठ तिवारी ने निर्देशित किया है कि प्रस्तावित संस्कृति नीति में लोक
कलाकारों को प्रोत्साहन एवं संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाये। हमारी लोक
संस्कृति में विभिन्न प्रकार के कौशल पाये जाते हैं। प्रत्येक जनपद एवं नगर
के विकास की धारणा एवं उसके लोक आधार, विभिन्न समुदायों/समूहों के लोक
व्यवहार ग्रामीण क्षेत्रों की पारम्परिक वास्तुकला आदि का संरक्षण एवं
विकास संस्कृति नीति का उद्देश्य होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारे लोक
जीवन में प्रचलित विभिन्न प्रकार की परम्पराएं एक विशिष्ट वैज्ञानिक आधार
पर ही विकसित हुयी हैै। इन परम्पराओं एवं व्यवहारों के सम्यक
शिक्षण-प्रशिक्षण एवं शोध के साथ-साथ कौशल विकास को भी संस्कृति नीति में
प्रमुखता दी जाये। उन्होंने कहा कि हमारी समृद्ध संत परम्परा के वैचारिक
योगदान को अक्षुण्ण रखते हुए इसके प्रचार-प्रसार को भी ध्यान में रखा जाये।
राज्यमंत्री ने कहा कि संस्कृति किसी की शारीरिक व मानसिक शक्तियों का
प्रशिक्षण, सुदृढ़ीकरण या विकास अथवा उससे उत्पन्न अवस्था है, जिससे यह मन,
आचार-विचार, रूचियों की परिष्कृति यानि शुद्ध होती है। विश्व में जो भी
बातें समझी या कही गयी हैं उनसे अपने आपको परिचित कराना ही संस्कृति है। समीक्षा
बैठक में अवगत कराया गया कि प्रदेश की प्रस्तावित संस्कृति नीति का प्रमुख
उद्देश्य उ0प्र0 के बहुरंगी सांस्कृतिक पक्ष को उसकी सम्पूर्ण विविधता में
सुरक्षित रखते हुए उसका प्रचार-प्रसार करना एवं उत्तर प्रदेश को विश्व
मानचित्र पर सर्वाेत्तम सांस्कृतिक गंतव्य के रूप पहचान दिलाना है।
प्रमुख
सचिव, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग मुकेश कुमार मेश्राम ने राज्यमंत्री को
अवगत कराया कि प्रस्तावित संस्कृति नीति में संस्कृति के क्षेत्र में कार्य
कर रहे प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक, अकादमिक
संस्थानों/एनजीओ/संस्थाओं आदि के साथ सांस्कृतिक आदान प्रदान को प्रमुख घटक
के रूप में सम्मिलित किया गया है। इसमें प्रदेश के विभिन्न सांस्कृतिक
क्षेत्रों की विशिष्ट संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, खान-पान,
खेलकूद, पहनावा आदि के सरंक्षण एवं संवर्धन को भी सम्मिलित किया गया है।
संस्कृति नीति का प्रमुख उद्देश्य रोजगारपरक होने के साथ-साथ प्रदेश के
सर्वांगीण सांस्कृतिक विकास का लक्ष्य प्राप्त करना है।