शास्त्र पूजने का ही विषय नहीं, जीने का विषय भी है
जो पुरुष शास्त्र विधि का त्याग करके अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह ना सिद्धि को प्राप्त होता है ना परमगति को और ना ही सुख को प्राप्त होता है हमारी भक्ति और जीवन शैली मनमुखी नहीं शास्त्र मुखी होनी चाहिए। आजकल जिन्हें देखो शास्त्रीय परम्पराओं का अस्वीकार करके मनमाने आचरण को भक्ति का नाम देने में लगे हैं हमारा क्या कर्तव्य है, क्या करने योग्य है और क्या त्यागने योग्य है?
ऐसी दुविधा की स्थिति में व्यक्ति नहीं शास्त्र ही प्रमाण है व्यक्ति तो कभी भी गलत सलाह दे सकता है लेकिन शास्त्र हमेशा सत्य को ही देते हैं। इसलिए शास्त्र का आश्रय हो और शास्त्रीय, वैदिक सनातन परम्पराओं में निष्ठा रखने वाला साधु, गुरु शास्त्र ही आपका कल्याण कर सकता है शास्त्र पूजने का ही विषय नहीं है, जीने का विषय है शास्त्र को मानें ही नहीं, शास्त्रानुकूल जीवन भी जीयें।