हमें अपनी गलती सुधारने के लिए कर्म करना चाहिए



महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं

चारों धाम घूमों, मन शान्त न होगा एक साधू ४५ वर्ष घूमें परन्तु मन में शान्ति नहीं आई जब बड़े महाराज (स्वामी बेनी माधव दास जी) के पास आये, कहा - महाराज शान्ति न हुई, तब महाराज ने मंत्र दिया बिना दीनता - शान्ति लाये, मन में शान्ति नहीं आती बिना खता कसूर कोई मूते, थूके, (तो) क्रोध न करै, तब शान्ति मिलेगी

हम प्रायः अशांत तब होते हैं जब हमारी कोई ना कोई आसक्ति, चाह -हमारी अपेक्षा अनुसार पूरी ना हो रही हो ...........

ये चाह धन -संपत्ति की हो सकती है, किसी प्रियजन की हो सकती है, यश/प्रतिष्ठा या सुर्ख़ियों में बने रहने की हो सकती है इत्यादि अब इस सन्दर्भ में हमारा हित इसी में होगा की हम अपने लिए कोई एक रेखा खींच ले कि बस इससे आगे नहीं (क्योंकि कभी -कभी ऐसी तृष्णा का कोई अंत नहीं होता है) ………..  नहीं तो अंततः हमें ही क्षति पहुंचेगी जीवन में जो है  जितना है सव ईश्वर की कृपा से हैं इसलिए हम उनका कृतज्ञ रहना चाहिए

बुरे काम करने के पश्चात् जब हमारी आत्मा हमें कचोटती है, तब भी पश्चाताप में हमारा मन अशांत होना संभव है, कभी -कभी बहुत अधिक या बहुत लम्बे समय तकअब इन परिश्थितियों में यदि हमारे पास अपनी गलती सुधारने की सम्भावना है तो हमें अपनेआप को भाग्यशाली समझ कर, धैर्य के साथ, अपनी गलती सुधारने के लिए कर्म करना चाहिए और दुर्भाग्यवश यदि वर्तमान में, अतीत में की गई गलती सुधारना संभव ना हो तो ईश्वर से और महाराज जी से अपने किये की ह्रदय से क्षमा मांगना चाहिए कर्मों का फल तो मिलना ही है पर हो सकता है की हमारे सच्चे पश्चाताप के आंसुओं से, ईश्वर की कृपा और महाराज जी के आशीर्वाद से, हमारे कर्मों के फल की तीव्रता कम हो जाए या वे हमें क्षमा ही कर दें

फिर हम तब अशांत होते हैं जब हम कठिनाइयों में होते हैं, जीवन में संघर्ष कर रहे होते है और अधीर हो जाते हैं महाराज जी हमें हिम्मत बंधाते रहे हैं, समझाते रहे हैं की हमें इन परिस्थितियों से निकलने के लिए अपना धर्म निभाते रहना है अर्थात प्रयत्न/कर्म करते रहना है और ईश्वर द्वारा निर्धारित समय पर सब ठीक हो जाएगा इन परिस्थितियों में हमें धैर्य की सबसे अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि धैर्य खोने से या कम होने से ही हम अशांत हो जाते हैं और धैर्य हमें  महाराज जी के प्रति हमारी आस्था, हमारे विश्वास हमारे भाव से मिलता है

नकारात्मकता में बहकर भी भविष्य की आशंकाओं को लेकर हम कभी -कभी अशांत हो जाते हैं ये तब, जब हम विश्लेषण करने पर पाएंगे की ऐसी अधिकांश आशंकाएं फलीभूत होती ही नहीं हैं इसका समाधान भी महाराज जी के प्रति हमारे समर्पण से संभव है 

फिर कुछ लोगों को मन की शांति की तृष्णा होती है उसकी खोज में मंदिर, तीर्थ स्थानों इत्यादि पर भी जाते रहते हैं पर क्या ऐसा करने से मन की शांति मिलती है ??  प्रायः नहीं - जैसा महाराज जी यहाँ पर समझा रहे हैं मंदिर -तीर्थ स्थानों के दर्शन करने से जितने देर हम इन स्थानों में रहते हैं तो अच्छा लगना संभव है, थोड़ी शांति की अनुभूति भी संभव पर उनसे बाहर आने के थोड़ी ही देर बाद फिर से मन अशांत हो सकता है। 

मन की शांति प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के लिए महाराज जी कहते हैं सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के अहंकार को त्यागना आवश्यक है पूर्णतः विनम्र व्यव्हार भी आवश्यक है -सबके साथ वर्तमान युग में ऐसा करना सरल नहीं है, परन्तु संभव है जिनमें ऐसा आचरण अपने जीवन में उतारने की इच्छाशक्ति/साहस हो और हमारे महाराज जी जैसे किसी सिद्ध संत से मन्त्र प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त हो -जैसे इस साधु को बड़े महाराज जी (स्वामी बेनी माधव दास जी) से प्राप्त हुआ था। 

सिद्ध संत/गुरु से मन्त्र प्राप्ति के पश्चात् ही उसके उच्चारण से भक्त का कल्याण संभव होता है संभवतः इसलिए क्योंकि गुरु की कृपा ही मन्त्र में शक्ति देने की क्षमता रखती है।

महाराज जी सबका भला करें

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