"सब धान बाइस पसेरी" नज़र आते हैं
लोग अक्सर कहते मिल जाएँगे कि “अब कोई पत्रकार ईमानदार
नहीं है। पुलिस तो होती ही चोर और दग़ाबाज़ है। डॉक्टर जानबूझकर ग़लत
बीमारी बताते हैं, ताकि बीमार उनकी जेबें भरता रहे। ज़िला कलेक्टर तो होगा
ही सीएम का चमचा। आदि-आदि। तो भाई ईमानदार कौन है? लॉक डाउन में तीन की
चीज़ तेरह में बेचने वाला व्यापारी?”
आपने ईमानदारों
की कद्र की? क्या आपने जाँबाज़ पुलिस वालों का सम्मान किया? क्या आपको पता
है, कि निष्पक्ष अधिकारी कैसे होते हैं? मैं सैकड़ों को जानता हूँ जो अपनी
ही मेधा, कर्त्तव्यनिष्ठा के बूते डटे रहे पर उनको क्रेडिट दिया? कितने
पत्रकार कोरोना काल में संकट से जूझ रहे हैं, कितनों की नौकरी गई, सैलरी
कटी। आप उन्हें नहीं जानते न जानने की कोशिश करेंगे। आप को सिर्फ़ “सब धान
बाइस पसेरी” नज़र आते हैं। तो भाई बेईमान वोटर को तो सब राज नेता, अधिकारी,
पत्रकार भी बेईमान ही मिलेंगे।