योगीराज में कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक, सारी कवायद कागज तक सीमित- अजय कुमार लल्लू

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कोरोनावायरस तीसरी लहर की दस्तक हो चुकी है डेल्टा वेरिएंट के बाद कप्पा वैरीअंट की भी वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है। 2 मरीजों की मौत भी हो चुकी है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की तैयारी दूसरी लहर की तरह केवल घोषणाओं और कागजों पर है। सरकार को चाहिए की पारदर्शी तरीके से जनता को विश्वास में लेते हुए कोरोनावायरस की लहर की तैयारियों को बतायें। 

कोरोना की तीसरी लहर जो बच्चों के लिए घातक है कि तैयारियों का ब्लूप्रिंट योगी सरकार को जनता के सामने रखना होगा। कल आई रिपोर्टों के आधार पर देश में वैक्सीनेशन ड्राइव में 60% की गिरावट दर्ज की गई है। तमाम राज्यों ने वैक्सीन की कमी सरकार से दर्ज करवाई है। अब जब लोगों ने स्वयं टीकाकरण के प्रति जागरूकता दिखाई तो वैक्सीन की किल्लत पड़ने लगी। आधा जुलाई माह बीतने को है, लेकिन अभी तक जिलों में डिमांड के अनुरूप वैक्सीन नहीं मिल रही है। उत्तर प्रदेश में भी कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जिस दिन तमाम जिलों से वैक्सीन की किल्लत की खबरें ना आयें। पिछले दिनों लखनऊ, वाराणसी ,नोएडा,  मेरठ , संभल,बुलंदशहर सहित तमाम जिलों से वैक्सीन किल्लत की खबरें आयीं, कई वैक्सीनेशन सेंटर बंद होने की भी खबरें आयी हैं।

कहां तो सरकार जुलाई माह में वैक्सीनेशन और तेज करने की बात कह रही थी कहां उत्तर प्रदेश में जुलाई वैक्सीनेशन की रफ्तार में लगातार गिरावट देखी जा रही है। कोरोना की तीसरी लहर का सबसे ज्यादा खतरा बच्चों पर बताया जा रहा है। इसके लिए पहली जरूरत है की जिले ही नहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रोहतक पशुओं के लिए स्पेशल पीडियाट्रिक वार्ड तैयार किए जाएं क्योंकि जिलों की आबादी के हिसाब से जिला चिकित्सालय दूसरी लहर में अपर्याप्त साबित हुए हैं। यही नहीं सरकार ने बच्चों के डॉक्टर पीडियाट्रिशियन की भर्ती भी अभी तक पूरी नहीं की जबकि यह संख्या भी अपर्याप्त ही है।सरकार स्पेशल वार्ड की तैयारी की बात तो जरूर कर रही है लेकिन अभी भी सरकार ने पैरामेडिकल स्टाफ की कोई भर्ती नहीं की है ऐसे में इनके दावों की हकीकत सामने आ जाती है कि कोई भी वार्ड बिना डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ के कैसे चलेगा मतलब साफ है।

सरकार की सभी तैयारियां कागजों पर जबकि जमीनी तैयारी कुछ भी नहीं। विशेषज्ञों ने तीसरी लहर की तैयारी के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात या कही थी कि चिकित्सीय सुविधाओं का विकेंद्रीकरण यानी सामुदायिक चिकित्सालय तक सरकार की तैयारी होनी चाहिए इस मोर्चे पर सरकार पूरी तरह फेल साबित नजर आती है। इसके साथ ही सभी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं जैसे एंबुलेंस, ऑक्सीजन, ज़रूरी दवाओं और अस्पताल में इलाज की कीमत पर सीमा निर्धारित होनी चाहिए और एक पारदर्शी  मूल्य नीति बनानी चाहिए। अस्पताल में इलाज कराना लोगों की जेब पर भारी नहीं पड़ना चाहिए। सरकार ने अपने ही मेनिफेस्टो में हर गांव तक प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना का दावा किया था जो इनके सभी दावों की तरह अभी भी खोखला ही साबित होता हो रहा है।

मिलाकर मेडिकल सुविधाओं के नाम पर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह बधाल है सरकार ने अपने ही घोषणा पत्र में प्रदेश में 6 एम्स की स्थापना का वादा किया था, क्या भी वादा ही रह गया रायबरेली में जिस एम्स की शिलान्यास का भाजपा दावा करती है उसकी हकीकत या है कि वह शिलान्यास भी कांग्रेस सरकार में हुआ था वहां ओपीडी भी कांग्रेस सरकार में ही शुरू हुई थी। उत्तर प्रदेश में एक तिहाई पीएससी में स्टाफ की तैनाती ही नहीं हुई है स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं तो कई जगह केवल सफाई कर्मचारी ही केवल ताला खोलते और बंद करते हैं तो तमाम जगह तो रिपोर्टों के अनुसार भवन जर्जर हालत में है उसमें से कई जगह केवल किराएदार रह रहे हैं जबकि पीएचसी बंद पड़ी हुई है। उदाहरण के तौर पर राजधानी के निकट और सरकार की नाक के नीचे बाराबंकी जिले में ही 54 पीएससी में से 25 पीएससी में ताले लटके हुए हैं। ऐसी स्थिति में दूरदराज के जिले और क्षेत्रों की हालत क्या होगी आसानी से सोचा जा सकता है।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

जेवर एयरपोर्ट बदल देगा यूपी का परिदृश्य

भाजपा का आचरण और प्रकृति दंगाई किस्म की है- अखिलेश यादव