जनसंख्या नियंत्रण : एक दोधारी तलवार
हाल ही में दो भारतीय राज्य सरकारों - उत्तर प्रदेश और असम
ने जनसंख्या नियंत्रण के लिये कुछ आक्रामक उपायों की वकालत की है। यह
प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सेवाओं के लाभार्थी बनने के
लिये दो बच्चों की नीति को आगे बढ़ाने से संबंधित है। वर्तमान
में चल रहे रुझानों को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत वर्ष
2025 तक या शायद इससे पहले सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को पछाड़कर प्रथम
स्थान पर आ जाएगा।
अत्यधिक जनसंख्या का बोझ अस्पतालों, खाद्यान्नों, घरों
या रोज़गार जैसे संसाधनों की कमी पैदा कर रहा है। हालाँकि
शास्त्रीय आर्थिक सिद्धांत पर आधारित जनसंख्या नियंत्रण दोधारी तलवार के
समान रहा है। इसके लाभ और लागत दोनों प्रकार के प्रभाव हैं।
भारत और विश्व में जनसंख्या वृद्धि की स्थिति:-
संयुक्त
राष्ट्र के एक डेटा के अनुसार, दुनिया के आधे से अधिक देशों में जनसंख्या
वृद्धि दर में प्रतिस्थापन दर की तुलना में कमी आ रही है और शायद पहली बार
दुनिया की जनसंख्या वृद्धि दर सदी के अंत तक शून्य होने का अनुमान है। इसके
अलावा हाल ही में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड -19 महामारी
के चलते वैश्विक जनसंख्या में कम-से-कम एक दशक की गिरावट देखी जा सकती है। विशेषज्ञों
का अनुमान है कि महामारी ने संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) से चीन तक पहले
से ही धीमी वैश्विक जन्म दर को और धीमा कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2021 और 2031 के बीच भारत की जनसंख्या में 1.09 के गुणक से वृद्धि होगी। वर्ष 2060 के बाद से भारत की जनसंख्या में गिरावट आनी शुरू हो जाएगी तथा प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाएगी।
जनसंख्या नियंत्रण सिद्धांत:-
माल्थस
का सिद्धांत: ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस ने ‘प्रिंसपल ऑफ पॉपुलेशन’ में
जनसंख्या वृद्धि और इसके प्रभावों की व्याख्या की है। माल्थस के अनुसार,
‘जनसंख्या दोगुनी रफ्तार (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती है, जबकि संसाधनों
में सामान्य गति (1, 2, 3, 4, 5) से ही वृद्धि होती है। परिणामतः प्रत्येक
25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है। हालाँकि माल्थस के विचारों से
शब्दशः सहमत नहीं हुआ जा सकता किंतु यह सत्य है कि जनसंख्या की वृद्धि दर
संसाधनों की वृद्धि दर से अधिक होती है।
हालाँकि
माल्थस अंततः गलत साबित हुआ क्योंकि कृषि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
भारत जैसे देशों ने शुद्ध खाद्य अधिशेष प्राप्त कर लिया है। बिग-पुश थ्योरी: हार्वर्ड के अर्थशास्त्री हार्वे लिबेंस्टीन ने प्रदर्शित किया कि कैसे जनसंख्या वृद्धि आय को कम करती है। इस सिद्धांत के पीछे मुख्य आर्थिक तर्क यह था कि यदि प्रति व्यक्ति आय कम है तो लोग बचत करने के मामले में बहुत गरीब हैं।चूँकि निवेश को बचत के समान माना जाता है और कम बचत का मतलब होगा कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि नहीं होगी।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण से जुड़े मुद्दे:-
जनसंख्या
से संबंधित सिद्धांतों ने प्रायः जनसंख्या अर्थशास्त्र के बारे में हमारी
समझ को बढ़ाया है किंतु इनमें से कई सिद्धांतों में बाद में कई खामियाँ भी
पाई गईं। यह निम्नलिखित तर्कों में परिलक्षित हो सकता है। उच्च
जनसंख्या हमेशा खराब आर्थिक स्थिति का कारण नहीं होती है: यह आवश्यक नहीं
है कि उच्च जनसंख्या अर्थव्यवस्था के लिये बुरी चीज़ हो।
जनसंख्या नियंत्रण उपायों के निम्नलिखित संभावित परिणाम होंगे:-
अर्थव्यवस्था हेतु काम करने के लिये पर्याप्त लोग नहीं होंगे। एक
बड़ी गैर-उत्पादक उम्र की बढ़ने वाली आबादी का समर्थन करने के लिये और
पेंशन प्रदान करने के लिये सरकार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होंगे।इससे गैर-औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलेगा।जनसंख्या
के वितरण संबंधी पहलू: वर्ष 1937 में जॉन मेनार्ड कीन्स ने "गिरती
जनसंख्या दर के कुछ आर्थिक परिणामों" पर एक व्याख्यान दिया। उनकी
प्रमुख चिंता उन स्थानों पर निवेश की निम्न मांग से संबंधित थी जहाँ
कंपनियों को उपभोक्ताओं की गिरती आबादी के कारण मांग में कमी का सामना करना
पड़ता है। चीनी मॉडल:
चीन ने 1980 के दशक में जनसंख्या नियंत्रण हेतु एक बच्चे के मानदंड को लागू
किया लेकिन अपनी आबादी में वृद्ध लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी (एक बच्चे की
नीति के कारण) के साथ चीन ने पुरानी नीति को छोड़ दिया और शादीशुदा जोड़ों
को अधिक बच्चे पैदा करने के लिये प्रोत्साहित किया।
भारत में धार्मिक कारक: भारत में व्याप्त धार्मिक ध्रुवीकरण जनसंख्या नियंत्रण को और भी अधिक जटिल मुद्दा बनाता है। भारत
में एक विशेष अल्पसंख्यक वर्ग को लक्षित करने के लिये अक्सर (प्रत्यक्ष या
परोक्ष रूप से) जनसंख्या विस्फोट जैसे तरीकों का उपयोग किया जाता है।
जनसंख्या नियंत्रण उपाय सामाजिक समरसता को भी प्रभावित करेगा।
गरीबों पर प्रभाव:-
कुल प्रजनन दर (टीएफआर) गरीबों में अधिक है और आय बढ़ने पर उसमें कमी आती है। इस
प्रकार पात्रता आधारित जनसंख्या नियंत्रण नीति गरीबों को नुकसान
पहुँचाएगी, जिन्हें इस तरह की मदद की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। पितृसत्ता: पितृसत्ता द्वारा संचालित सामाजिक व्यवस्था में लड़के को वरीयता देना उच्च प्रजनन दर का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यह
माना जाता है कि दो बच्चों की नीति को सीमित करने से कन्या भ्रूण हत्या
आदि जैसी प्रथाओं के माध्यम से जनसंख्या के लैंगिक अनुपात पर प्रतिकूल
प्रभाव पड़ता है।
आगे की राह:-
जनसांख्यिकीय
लाभांश पर ध्यान देना ज़रूरी: भारत को बढ़ती जनसंख्या के बारे में चिंता
करने के बजाय अपने जनसांख्यिकीय लाभांश के दोहन पर ध्यान देने की आवश्यकता
है। भारत इतिहास में एक
ऐसे अनूठे क्षण में प्रवेश करने की ओर अग्रसर है जहाँ वह अपने आर्थिक
लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा
सकता है। सरकार के
जनसंख्या अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत की जनसंख्या का 53.6%
हिस्सा 29 वर्ष से कम आयु का है। भारत की एक-चौथाई से अधिक जनसंख्या की
उम्र 14 वर्ष या उससे कम है। हमारे
नीति निर्माताओं को भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को सकारात्मक तरीके से
देखते हुए उसके दोहन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रयत्न करना चाहिये।
जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Divided):-
भारत
में युवाओं की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी है जो अकुशल, बेरोज़गार, सेवाओं और
सुविधाओं पर भार है तथा अर्थव्यवस्था में उनका योगदान न्यूनतम है। किसी भी
देश के लिये उसकी युवा जनसंख्या यदि कुशल रोज़गारयुक्त और अर्थव्यवस्था
में योगदान देने वाली है तो वह उसकी जनसांख्यिकीय लाभांश होती है।
कौशल विकास का उन्नयन:-
वर्तमान में भारत अपने युवाओं को सर्वोत्तम संभव अवसरों की गारंटी देने के समीप नहीं है। उदाहरण
के लिये उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार, भारत
का उच्च शिक्षा क्षेत्र गहरी संरचनात्मक असमानताओं से जूझ रहा है। यह युवा आबादी अपने द्वारा अर्जित कौशल के आधार पर अत्यधिक उत्पादक या अनुत्पादक बन सकती है। महिलाओं
पर ध्यान केंद्रित करना: महिलाओं की शिक्षा प्रजनन दर के साथ-साथ पहले
बच्चे के जन्म के समय माँ की उम्र दोनों के मामले में महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाती है। शिक्षा महिलाओं में प्रजनन दर और समय से पहले जन्म को कम करने
में मदद करती है।
निष्कर्ष:-
भारत
जनसांख्यिकीय संक्रमण के चरण में है जहाँ मृत्यु दर में गिरावट आ रही है
और अगले दो से तीन दशकों में प्रजनन दर में गिरावट आएगी। इससे
जनसंख्या वृद्धि में कटौती की गुंजाइश बनती है क्योंकि भारत में अभी भी
सकारात्मक विकास दर है लेकिन हमारी जनसंख्या नीति को शून्य जनसंख्या वृद्धि
के बड़े परिणामों को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
निखिलेश मिश्रा