केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की 36वीं बैठक की अध्यक्षता की

नई दिल्ली केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 36वीं बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा और संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब भी उपस्थित थे। इस अवसर पर केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आज हम सबके लिए बहुत ही हर्ष का विषय है कि  हमने समिति के 10वें प्रतिवेदन को राष्ट्रपति महोदय के पास भेजने की मंजूरी दे दी है। राष्ट्रपति का समय ले कर हम उनके पास जाएंगे। अमित शाह ने कहा कि कल अगस्त क्रांति का दिन था और इस बार 9 अगस्त का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसी वरह हम आज़ादी के 75 वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। एक लंबे समय की गुलामी के बाद हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था। उन्होने कहा कि अगर कोई इन 75 वर्षों का मूल्यांकन करे तो वह कह सकता है कि इन 75 साल में सभी ने मिलकर लोकतंत्र की जड़ों को गाँव और कस्बों तक पहुंचाया है और लोकतंत्र को हमारा स्वभाव बनाया है। 

अमित शाह ने कहा कि उन्हे बहुत सारे देशों में लोकतन्त्र आने के बाद के इतिहास का अनुभव है। भारत में बहुपक्षीय संसदीय प्रणाली स्वीकार करने के बाद इसे नीचे तक पहुँचाने में हमें कोई परेशानी नहीं हुई, यह बहुत स्वाभाविक तरीके से हुआ। कोई संघर्ष भी नहीं हुआ। गृह मंत्री ने कहा कि न जाने कितने राजे रजवाड़े थे, एक अलग प्रकार की शासन व्यवस्था थी जो सदियों से चलती थी। अलग अलग निहितस्वार्थ वाली समूहों की रचना थी और न जाने कितने समय तक उन्होने समाज का शोषण भी किया। लेकिन एक ही दिन में बिना किसी रक्तपात के सब बदल गया। श्री शाह ने कहा कि आज़ादी के बाद बहुत सारे सत्ता परिवर्तन भी हुए उस वक्त भी कहीं रक्तपात नही हुआ। इससे पता चलता है कि दिन प्रतिदिन हमारे लोकतंत्र की जड़ें गहरी और मज़बूत होती जा रही हैं तथा लोकतंत्र का वटवृक्ष काफी विशाल होता जा रहा है। 

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मुझे मालूम नहीं है कि देश स्वतन्त्रता सेनानियों के स्वप्न पूरे कर पाया है या नहीं। शायद हमारी गति थोड़ी धीमी हो परंतु में इतना निश्चित कह सकता हूँ कि हमारा पथ सही व लक्ष्य की ओर है और हम लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेंगे। अमित शाह ने कहा कि इसमें हमारी स्थानीय भाषाओं और विशेषरूप से राजभाषा हिन्दी का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होने कहा कि हमारे यहाँ लोकतंत्र के संस्कार नये नहीं हैं, दुनिया में सबसे पहला लोकतंत्र हमारे यहाँ ही था और इस संस्कार और संस्कृति को भाषा के बिना हम सँजो कर नहीं रख सकते। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हमारे नेताओं ने भाषाओं को जो महत्व दिया और अँग्रेजी का यहाँ आधिपत्य न पड़ जा उसकी सजगता दिखाई इसी कारण आज हमारी भाषाएँ समृद्ध हैं। स्थानीय भाषाएँ भी समृद्ध हैं और दिन प्रतिदिन राजभाषा हिन्दी भी समृद्ध हुई है। गृह मंत्री ने कहा कि बहुत सारे देशों की न लिपि बची है और न ही भाषा बची है, लेकिन मैं गर्व के साथ कह रहा हूँ कि आज़ादी के बाद जितनी बोलियाँ थी उनको भी हमने संरक्षित और संवर्धित रखा है और जितनी भाषाएँ थीं उनको भी बचा कर रखा है। साथ ही जितनी लिपियाँ थीं वे भी देवनागरी के तत्वाधान में आगे बढ़ रही हैं। इससे देश की एकता और अखंडता में कोई दरार नहीं पड़ी बल्कि स्थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश को एक करने का काम किया है। इस वजह से ही मेरे विचार से राजभाषा समिति संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति है।


अमित शाह ने कहा कि न्याय के अंदर भी हिंदी का प्रयोग होना चाहिए इसके लिए न्यायविदों के साथ चर्चा करनी पड़ेगी। आजादी के 75 साल होने पर आजादी के आंदोलन में राजभाषा हिंदी की भूमिका यह थीम होना चाहिए। देश की संसद के सामने उसको उपस्थित करना चाहिए कि हमारी स्‍थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश के आंदोलन में कितना बड़ा योगदान दिया है। गृह मंत्री ने कहा कि स्‍थानीय साहित्‍यकारों ने आंदोलन को गति देने के लिए अनेक साहित्य लिखे। हम सब का यह सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि क्षेत्रीय सम्मेलन और राष्ट्रीय सम्मेलन की थीम इसके आधार पर होनी चाहिए। इस विषय के विशेषज्ञों को बुलाकर, साहित्यकारों को बुलाकर पूरे देश के अंदर यह संदेश जाना चाहिए कि हमारी आजादी के आंदोलन में स्थानीय भाषाएं और राजभाषा का कितना बड़ा योगदान रहा है। साथ ही क्षेत्रीय इतिहास का भी राजभाषा में ढंग से अनुवाद होना चाहिए। लाल बहादुर शास्त्री ने इस दिशा में विशेष प्रयास किया था किंतु उसके बाद वह प्रयास मंथर गति से चल रहा है। एक उदहारण स्वरुप अगर गुजरात के एक बच्चे को विजयनगर साम्राज्य के बारे में पढ़ना है तो अंग्रेजी के अलावा कोई विकल्प नहीं है, ऐसे अन्य कई राज्यों के उदहारण हैं।

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विभिन्न दलों के सांसदों के साथ चर्चा करके स्थानीय इतिहास की स्थानीय भाषा की पुस्तकों की एक सूची बनाएं और उस सूची की पुस्तकों का भारत सरकार का संस्कृति विभाग अनुवाद कराए और देश के अच्छे पुस्तकालयों में इसे उपलब्ध कराना चाहिए और इसके विक्रय की भी व्यवस्था हो। उन्होंने कहा कि इतिहास पढ़ने वाले बच्चों के लिए अगर राजभाषा में देश के हर कोने का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा, कश्मीर से कन्याकुमारी तक का इतिहास, तो अपने आप राजभाषा का प्रचार बढ़ेगा और इससे बच्चों के शब्दों की जानकारी का भंडार समृद्ध हो जाएगा।

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