कृष्ण के अनंत स्वरूप हैं। अपनी अपनी मूल प्रकृति के अनुसार भारत की हर भाषा, हर बोली, हर सांस्कृतिक-समूह, हर उपासना पद्धति, हर प्रान्त-जनपद ने कृष्ण को बारम्बार सुमिरा है। हर दर्शन परम्परा, हर एक आयातित निर्यातित विचारधारा ने कृष्ण को येन केन प्रकारेण भजा है। अद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत हो या आधुनिक लेफ्टिस्म, फेमिनिज्म़ जैसे वाद। कृष्ण का संक्रामक आकर्षण सबको है। शांकर दार्शनिकों को लुभाता कृष्ण-काली ऐक्य हो या राधा-कृष्ण अद्वैत हो। तनिक स्त्रैण सौंदर्य वाले, तीन माताओं वाले सौभाग्यशाली त्रयम्बक 'मम्मास् ब्वाय' मातृशक्तियों को लुभाते हैं। तो एंटी इस्टेब्लिशमैंट प्रकृति वालों को इन्द्र, वरुण, कुबेर, अग्नि, ब्रह्मा, काम, नाग का मानमर्दन करने वाले क्रांतिकारी देवदमन श्रीकृष्ण पसंद आते हैं। नागरों को द्वारिकाधीश, ग्राम्यों को गोकुल का लल्ला, बौद्धिकों को गीता-गीतकार, प्रेमियों को राधावल्लभ, नीतिज्ञों को महाभारत-सूत्रधार पसंद हैं। संगीत-रस मर्मज्ञ वंशी पर मोहित हैं, टैगोर कह चुके 'तोमार वांशि आमार प्राणे बेजे छे'। मल्ल योद्धा को चाणूर-मुष्टिक मर्दनम् पर आसक्ति है। और सुकुमारि