सब भाग गए पुजारी डटा रहा


सब भाग गए पुजारी डटा रहा! गांधार देश पर तालिबानियों का कब्जा क्या हुआ सब भागने लगे। जो कल तक शरिया के समर्थक थे, वे भी भाग रहे हैं। अपनी बीवी बच्चों को छोड़ कर भाग रहे हैं। पर उस विधर्मी सत्ता के बीच खड़े एकमात्र मन्दिर का पुजारी नहीं भाग रहा है। जानते हैं क्यों?

लंका में रावण की सत्ता थी, राक्षसों का राज था। हर ओर अत्याचार पसरा हुआ था, फिर भी राजधानी में कुटिया डाल कर रहने वाला एकमात्र वैष्णव विभीषण डर कर भागा नहीं। क्यों? क्योंकि उसे भरोसा था कि एक दिन राम आएंगे।

किष्किंधा में बाली का आतंक था। कोई उसके विरुद्ध बोल नहीं पाता था। किसी के पास उसे पराजित करने का बल नहीं था। उसने सुग्रीव का सबकुछ छीन लिया था। पर सुग्रीव उसकी राजधानी से चार कदम दूर ही ऋषिम्युक पर्वत का एक सुरक्षित कोना ढूंढ कर अड़े रहे। भागे नहीं... क्यों? क्योंकि उन्हें भरोसा था कि एक दिन उद्धारक आएगा।

अहिल्या को उनके पति ने ही त्याग दिया था। न पति, न पुत्र, न परिवार, न समाज.. फिर भी एक परित्यक्त कुटिया में पत्थर के समान सुन्न पड़ी वह तिरस्कृत स्त्री युगों तक जीवित रही। क्यों? क्योंकि उसे भरोसा था कि राम आएंगे।

धर्म क्या है जानते हैं? धर्म ईश्वर पर इसी दृढ़ विश्वास का नाम है। धर्म उस भरोसे का नाम है कि बुराई का अंत होगा और अच्छे दिन आएंगे। अफगानिस्तान में जहाँ बच्चे बच्चे काफिरों को मारने के लिए ग्रेनेड ले कर घूम रहे हैं, वहाँ दृढ़ता से खड़ा वह पुजारी इसी भरोसे के बल पर खड़ा है। सम्भव है कि कल आतंकी उन्हें मार भी दें, पर उसका धर्म नहीं मरेगा। जिस दिन उसके जैसे दस लोग खड़े हो गए, दुनिया का कोई आतंकी संगठन उन्हें झुका नहीं सकेगा।

व्यक्ति जब अपने धर्म की रक्षा करता है, तो धर्म उसकी रक्षा करता है।और विश्वास कीजिये, धर्म से बड़ा रक्षक इस सृष्टि में अन्य कोई नहीं... कोई भी नहीं।

उस पुजारी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। खासकर भारत के हिन्दुओं को उससे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। यहाँ भी भागने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या खड़ी हो गयी है। वे कभी कश्मीर से भागते हैं, कभी कैराना से भागते हैं, कभी मुरादाबाद से भागते हैं, कभी बंगाल कभी आसाम से भागते हैं...

लोग हमेशा कहते हैं कि कोई कैराना के हिंदुओं के लिए नहीं बोलते, कश्मीरी हिन्दुओं के लिए नहीं बोलते... यह सच है कि स्वयं को उदारवादी बताने वाले इन पीड़ितों के लिए कभी नहीं बोलते, पर इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। भगोड़ों के लिए कोई नहीं बोलता। इतिहास के पन्नों में भगोड़ों का नाम हासिये पर भी नहीं लिखा जाता।

अपने हिस्से की लड़ाई सबको स्वयं ही लड़नी होती है। कोई दूसरा आपकी तबतक सहायता नहीं कर सकता, जबतक आप स्वयं के लिए लड़ने को तैयार न हों। और यह कठिन भले हो, असम्भव बिल्कुल भी नहीं।

      काबुली पुजारी से लड़ना सीखिये साहब! आपको इसकी बहुत जरूरत है।


(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)

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