आत्मा में परमात्मा की ओर कुदरती कशिश है
हमारी आत्मा उस परमात्मा की ही अंश है, इसलिए आत्मा में परमात्मा की ओर कुदरती कशिश है,लेकिन उस पर कमो॔ का भारी बोझ है। इसलिए वह इस प्रेम का अनुभव नही कर सकती परमात्मा की ओर नही जा सकती..
यदी जीव को प्रभु मिलन की सच्ची लगन पैदा हो तो, अंतर में विचार करना चाहिये कि हम कौन है और किस प्रकार दुखः सुख के जंजाल मे फंसे हुए है । कर्मो के वश, मजबूर हो कर, आवागमन की डोर से जुड़ कर काल के हाथो कठपुतली बन गये है |
और तभी सच्चाई से आत्मा को तन मन से अलग करने का जतन किया जा सकता है |
जब यह संयोग बनता है तभी सतगुरु शब्द धुन के साथ जोड़ कर, हमें भक्ती दान देकर, संसार चक्र से अलग कर, निजधाम से नाता कायम कर देते है । बीज खेत में उल्टा पड़े या सीधा अंत में अंकुरित हो ही जाता है । ठीक इसी प्रकार प्रभु को जैसे भी याद करोगे कल्याणकारी होगा।