बिना कर्म किये संसार में कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता
यदा यदा हि धर्मस्य
ग्लानिर्भवतिभारत !
अभियुत्थानं अधर्मस्य
तदात्मानं सृजाम्यहम् !
परित्राणाय साधूनां
विनाशाय च दुष्कृताम् !
धर्मसंस्थापनार्थाय
संभवामि युगे - युगे !!
भगवान
श्रीकृष्ण एक अद्भुत, अलौकिक दिव्य जीवन चरित्र। जो सभी अवतारों में एक
ऐसे अवतार थे जिन्होंने यह घोषणा की कि मैं परमात्मा हूँ। गीता का दिव्य
उपदेश देते हुए उन्होंने कहा कि - हे अर्जुन ! जब - जब धर्म की हानि होती
और अधर्म एवं अधर्मियों का अभ्युदय होता है तब - तब मैं इस धराधाम पर
साधुओं (सज्जनों) की रक्षा एवं दुष्टों (दुर्जनों) के विनाश के लिए
प्रत्येक युग में आता रहता हूँ।
भगवान श्रीकृष्ण समस्त प्राणियों को भोग
एवं मोक्ष प्रदान करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण एक कुशल योद्धा, एक कुशल
राजनीतिज्ञ एवं पिरखर दार्शनिक थे यही कारण है कि आज मात्र भारत देश ही
अपितु सम्पूर्ण विश्व में किसी न किसी रूप में उनको आदर्श मानकर पूजा जाता
है। यदि मनुष्य नास्तिक भी है तो भी वह भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से
उद्धृत हुई "श्रीमद्भगवद्गीता" से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। ऐसे थे
हमारे भगवान श्रीकृष्ण। जिन्होंने जन्म लेते ही मनुष्य को कर्मयोग की
शिक्षा देना प्रारम्भ कर दिया कि यदि आप कर्मयोगी नहीं हैं तो पूतना,
तृणावर्त व्योमासुर, अघासुर, बकासुर आदिक राक्षसी प्रवृत्तियाँ आपको जीवित
नहीं रहने देंगी। यदि संसार में जीवित रहना है तो इन सभी दुष्प्रवृत्तियों
से संघर्ष करने का कर्म करना पड़ेगा। बिना कर्म किये संसार में कुछ भी नहीं
प्राप्त किया जा सकता !
जीवन एक संघर्ष है और यदि इस संघर्ष में विजयी
होना है तो हमें भगवान श्रीकृष्ण के आदर्शों को अपनाना होगा। आज
भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को सम्पूर्ण विश्व में भगवान कन्हैया का
जन्मोत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है ! वहीं दूसरी ओर आज के कुछ
विधर्मी भगवान श्री कृष्ण को पता नहीं क्या-क्या कहा करते हैं। यहाँ तक
कि लोग उनके चरित्र पर भी उंगली उठाने से नहीं चूकते हैं। ऐसे
लोगों से बस इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि किसी के विषय में कुछ जानना है
तो आप सतही स्तर पर नहीं जान सकते उसके लिए आपको गहराई में उतरना पड़ेगा।
और गहराई में वही उतर सकता है जो कुशल तैराक होगा। तो भैया ! यदि हमारे
कन्हैया के विषय में जानना ही चाहते हो तो पहले कुशल तैराक (तत्वदर्शी) बनो
! बिना तत्वदर्शी बने , सिर्फ कुछ पुस्तकों का अध्ययन करके आप एक महामानव
के विषय में नहीं जान सकते हैं ! हाँ यह अवश्य हो सकता है कि आप बिना
तैराकी सिखे मनुष्य की तरह गहरे जल में उतरने का दुस्साहस करके डूब सकते
हो।
यदि कुशल तैराक बनना है तो सर्वप्रथम किसी कुशल तैराक को ही आप गुरु
बनाईये तभी यह गुण आपमें आ सकता है। उसी प्रकार यदि भगवान श्री कृष्ण के
नाम, रूप, लीला, धाम की वास्तविकता जानने की इच्छा है तो सर्वप्रथम किसी
ऐसे गुरु की शरण में जाईये जो कि सही मायनों में तत्वदर्शी व वास्तविक गुरु
हो। जो स्नयं जगद्गुरु है उसके विषय में कोई साधारण दिखावे का गुरु आपको
कुछ बता ही नहीं सकता वह तो आपको वही पुस्तकें रटने के लिए दे देगा। भगवान
श्री कृष्ण के जीवन का एक एक क्षण रहस्यमयी एवं लोककल्याण के लिए ही
व्यतीत हुआ है। ऐसे परमात्मा को साधारण कहकर उन पर अनर्गल प्रलाप करने
वालों को ईश्वर सद्बुद्धि प्रदान करें।