अति स्वार्थ से टूटता विखरता परिवार
पहले संयुक्त परिवार का चलन था। संयुक्त परिवार में दादा दादी,चाचा चाची,माता पिता,उनके पुत्र सभी मिल जुलकर रहते थे संयुक्त परिवार बच्चों के विकास के लिये एक अनुकुल वातावरण उपलब्ध कराता था यहाँ पर बच्चों को मार्गदर्शक और सहभागी दोनों ही मिलते थे।
मनोविश्लेषकों के अनुसार जिस तेजी से लोग शिक्षित हुए है उतनी ही तेजी से उनकी मानसिक स्थिति में भी बदलाव आया है। स्वार्थ बेपनाह बढ़ा है त्याग भावना मृतप्राय हो रही है आज के शिक्षित लड़के लड़कियां कर्तव्य के प्रति समर्पित न होकर अब अधिकार के प्रति सचेत हो रहे हैं ।
पहले एक आदमी कमाता था,एक दो खेती करते थे और एक ही घर में सब साथ बैठकर खाते थे सब ख़ुश थे ।
अब पति पत्नी और बच्चे का एकल परिवार का चलन हो गया। अब सभी कमाते हैं और फिर भी इनको ही पूरा नहीं पड़ता घर के हर काम के लिए नौकर नौकरानी चाहिए।
चाचा चाची, ताऊ व ताई को ही नहीं अलग कर दिया बल्कि इस एकल परिवार में मां बाप पेण्डुलम की तरह हो गये कभी किसी बेटे बहू के साथ तो कभी किसी और बेटे बहू के साथ। एकल परिवार और भी विघटित होने लगा है अब तो कुछ पति पत्नी भी एक दूसरे से अलग रहने लगे हैं पति पत्नी के बीच अब बच्चे पेन्डुलम बन गये हैं।
ये एकल परिवार ही संयुक्त परिवार के बिखराव के जिम्मेवार हैं पहले पति पत्नी में तनाव, मनमुटाव होता था तो संयुक्त परिवार ऐसा करने से रोकता था घर के बड़े बुजुर्ग हस्तक्षेप करते थे, समझाते थे। परिवार टूटने से बच जाता था अब बड़े बुजुर्ग ही हाशिए पर चले गये हैं उनके प्रति मान सम्मान में कमी कर दी गई है। बुजुर्ग ऐसे मामले में असहाय ही हो जाते हैं।
आज की बहुएं अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित न हो अपने अधिकार के प्रति सचेत हो गई हैं ऐसे में वे अपनी मनमानी करती हैं कुछ लोग भड़काकर झूठे आरोप लगवाकर पुलिस केस करवा देते हैं।ऐसे में सीधे साधे परिवार अधिकतर फँस जाते हैं।
कुछ पति भी अपने सत्तात्मक प्रवृति के वशीभूत हो पत्नियों पर जुल्म ढाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
परिवार के बिखराव में मोबाइल का भी अहम् रोल है सास ने एक के बजाय दो टमाटर का तड़का लगाने पर डांटा तो मोबाइल के मार्फत यह खबर नमक मिर्च के साथ अविलम्ब बहू के मायके पहुंच जाती है फिर शुरू हो जाता है, मोबाइल पर दोनों समधन का बातचीत का अनवरत सिलसिला ,जो अनुनय विनय से शुरू हो आरोप प्रत्यारोप के चरम बिन्दु पर खत्म होता है पंजाब का महिला आयोग परिवार के विखराव के लिए मोबाइल को एक बहुत बड़ा कारण मानता है।
पहले पिता बेटी की विदाई के समय यह सीख देता था, "बेटी, अब वही तुम्हारा घर है उसकी मान मर्यादा का ध्यान रखना ही तुम्हारा कर्तव्य है ।"
हमारे एक जानने वाले ,जो काफी दबंग थे, बेटी द्वारा फोन पर शिकायत करने पर यही सीख देते थे, "बेटी, किसी तरह से एडजस्ट करने की कोशिश करो।"
वे दबंग थे आनन फानन में बेटी की ससुराल पहुंच उनकी ऐसी तैसी कर सकते थे, परन्तु उनका कहना था कि यह कृत्य समस्या का समाधान नहीं है बेटी को उसी घर में रहना है दबाव से वह अपने ससुराल वालों का दिल नहीं जीत सकती दामाद भी बेटी से खुश नहीं रहेगा पिता की सीख मान बेटी ने एडजस्ट करना शुरू किया धीरे धीरे परिस्थितियां अनुकूल हो गईं ।आज बेटी उनकी सुखी व सान्नद है।
शुरूआती दौर बहू के लिए दो परिवारों के अलग अलग रीति रिवाजों के बीच सामंजस्य बिठाने का होता है।
यदि बहू इसमें सफल हो गई तो बल्ले बल्ले नहीं तो अल्लाह ही बेली (खुदा हीं मालिक) है औरत परिस्थिति के अनुसार अपने को ढाल सकती है। यदि वह अपने घर के जाने पहचाने माहौल से निकल अनचिन्हें अबूझे ससुराल को अपना घर बना लेती है तो यह उसकी और उस परिवार की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
आज जो परिवार विखर रहा है, उसका मूल कारण बेटी के घर वालों का अनावश्यक बेटी की जाती जिन्दगी में दखल है
क्या बनाया, क्या खाया, क्यों बनाया, क्यों खाया आदि अनावश्यक प्रश्न पूछे जायेंगे तो इससे परिवार टूटेगा, जुड़ेगा नहीं।
कई महिलाएं अपनी ससुराल छोड़ मायके में रह रहीं हैं उनके मायके वाले ईगो पाले हुए हैं। लड़कों वालों से न बात करते हैं और न उन्हें लड़की से बात करने देते हैं और न तलाक की अर्जी देते हैं आस पड़ोस के लोग पूछते हैं, कब जाओगी? सांप छंछूदर वाली असमंजस की स्थिति बन जाती है लड़की पति द्वारा दिये जाने वाले भरण पोषण भत्ते से भी मरहूम हो अपने मां बाप पर बोझ बन के रह जाती है और भाभियों की गाली सुनती है लड़की उस घड़ी को कोस रही होती है, जब उसने घर छोड़ा था।जीवन की अनिश्चितता उसके सामने होती है ।
न खुदा ही मिला,
न बिसाल-ए-सनम।
ना इधर के रहे हम,
ना उधर के रहे हम ।
जिन परिवारों में एकमात्र संतान बेटी हो, उन परिवारों में बेटी की परेशानी की जरा सी भनक मिलते ही मां बाप बेटी का घर उजाड़ने के लिये सक्रिय हो जाते हैं वे बेटी को अपने घर पूरे दम खम से लाते हैं। बेटी को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे उसे सर आँखों पर बिठा कर रखेंगे उसकी हर जरूरत पूरी करेंगे इस तरह से उन्हें नाती पोते मिल जाते हैं। उनकी मन की बगिया झूम उठती है, पर बेटी का घर उजड़ जाता है।
तालाक और डायवोर्स शब्द उर्दू व अंग्रेजी के शब्द हैं, पर हिन्दी में इसका कोई समनार्थक शब्द नहीं है इसलिए उर्दू के तालाक से हीं हिन्दी वालों को भी काम चलाना पड़ रहा है।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे ऋषि मनीषियों ने तलाक की परिकल्पना हीं नहीं की थी फिर भी भारत में तलाक दर बढ़ने लगा है।
पति पत्नी को यह मानकर चलना चाहिए कि खुशी बांटने वाले हजारों मिल जाएंगे, दुःख पर आंसू बहाने वाले गिने चुने हीं होंगे पति पत्नी का अहम एक दूसरे के सामने झुकने नहीं देती वे केवल एक दूसरे की कमियों को देखते हैं एक दूसरे की अच्छाइयों को देखने का प्रयत्न भी नहीं करते ।
यदि लड़के के माँ बाप के समझाने से वे नज़दीक आने का प्रयत्न भी करते हैं तो लड़की के माँ बाप ही रोड़ा बन जाते हैं जो लड़की नौकरी में हैं वहाँ तो लड़की के माँ बाप उसके साथ ही डेरा डालकर लड़की और बच्चों की ज़िन्दगी बरबाद कर देते हैं पति पत्नी के बीच की दूरी बढ़ाने से सबसे पहले एक दूसरे को और बच्चों को कष्ट पहुंचता है।फिर इन बच्चों के दादा दादी को बच्चों के नाना नानी अपने निज स्वार्थ में इस कष्ट को बढ़ाते रहते हैं जब लड़की की अक्लमंदी होश में आती है तो समय निकल चुका होता है समय का रेत कभी भी मुट्ठी में बंद नहीं किया जा सकता।
दुनिया में कोई भी शत प्रतिशत अच्छा नहीं है यह मान कर चलेंगे तो जीवन सुखी होगा।