पिता की इज्जत करो ताकि लोग तुम्हारी इज़्ज़त करें


पिता की सख्ती बर्दाश करो ताकि काबिल बन सको। पिता की बातें गौर से सुनो ताकि दूसरों की न सुननी पड़े। पिता के सामने ऊंचा मत बोलो वरना भगवान तुमको नीचा कर देगा। पिता का सम्मान करो, ताकि तुम्हारी संतान तुम्हारा सम्मान करे। पिता की इज्जत करो ताकि लोग तुम्हारी इज़्ज़त करें।पिता की आज्ञा मानो, ताकि खुश हाल रह सको। पिता के सामने नजरें झुका कर रखो, ताकि भगवान तुमको दुनियाँ मे आगे करे।

पिता एक किताब है जिसमें जीवन का अनुभव लिखा है, पिता के आँसू न गिरने पायें, वरना भगवान तुम्हें दुनिया से गिरा देगा। माँ के कदमों में स्वर्ग है पर पिता स्वर्ग का दरवाजा है, अगर दरवाज़ा ना ख़ुला तो अंदर कैसे जाओगे? पिता वट वृक्ष है और माँ उसकी छाया, माँ यदि जीवन देती है तो पिता सम्मान की ज़िंदगी ,बिना उसके जीवन अनाथ हो जाता है, सूरज न होता तो चाँद और तारों का वजूद न होता, जो गरमी हो या सर्दी अपने बच्चों की रोज़ी रोटी की फ़िक्र में परेशान रहता है, पिता के जैसा तुम्हें कोई प्यार नहीं दे सकता, न कर सकता है, पर वह अपना प्यार दिखाता नहीं, उसका प्यार आन्तरिक होता है। जो प्यार दिखाते हैं उनके प्यार में स्वार्थ होता है, पिता का प्यार जीवन को सफल बनाने के लिये होता है,पर औरों का प्यार स्वार्थपूर्ण होता है आप को सफल बनाने के लिये नहीं होता।

उससे भी बुरा मीठा प्यार होता है,जो धीरे धीरे बरबाद कर देता है, इस धरती पर पिता ही ऐसा प्राणी है जो पुत्र पुत्री  या पौत्र पौत्री को स्वयं से आगे बढ़ने की कामना करता है और सफल होने पर अंतर्मन से प्रसन्न होता है, याद रहे सूरज गरम ज़रूर होता है मगर डूब जाये तो अंधेरा छा जाता है। जिस तरह संस्कारी एवम् सदाचारिणी माँ अपने पति की बुराई अपने बच्चों के आगे कभी नहीं करती और हमेशा सम्मान करती है ,उसी तरह बच्चों को भी चाहिए कि वे अच्छे संस्कार एवम् सदाचार का पालन करें।अतः हम  सब नित्य अपने पिता ,प्रपिता के  निहस्वार्थ त्यागों के लिये ईश्वर से प्रार्थना करें- हे ईश्वर ! मेरे पिता, प्रपिता (बाबा ) को अच्छा स्वास्थ्य दें। उनकी तमाम परेशानियों को दूर कर, उन्हें हमेंशा हमारे लिये खुश रखें तथा उनका पूरा परिवार हमेशा उन्नतिशील कर्मशील तथा संस्कारवान रहे और हमें  अपने कुल की यश और कीर्ति को आगे बढ़ाने की तथा कुल सम्पत्ति की रक्षा के लिये शक्ति प्रदान करें।

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