हमारा कल्याण तभी संभव है जब इसके लिए हम स्वयं प्रयासरत रहे
भक्तों का महाराज जी को प्रश्न और फिर महाराज जी द्वारा उसका उत्तर हम सब आपके हैं आप की कृपा से जो होगा, सो होगा। उत्तर:-
बिना पंखा के डुलाये हवा नहीं मिलती जो कहा जाय उस पर चलने से काम होता है
कर्म भूमि है सबको भोगना परता है देवी देवता, आलस्य पर लात मार कर, मन से
जबरदस्ती लड़कर अपना काम करके अजर-अमर हो गये यह बातें कायर की हैं कि हम से
कुछ न होगा मनुष्य का दर्जा देवी देवता से ऊँचा है जब मन लगा कर न किया
जावेगा तब तिलक, चन्दन, माला, कन्ठी, भेष -कुछ काम न देगा।
हममें
से बहुत से लोग संभवतः ऐसा सोचते हैं, होंगे कि हम महाराज जी की शरण में आ
गए हैं तो बस, अब हमारा सब अच्छा होगा हमारी सब समस्याओं का समाधान महाराज
जी के पास है और हमें बस उनकी भक्ति (आरती-भजन-कीर्तन-सत्संग इत्यादि)
करते रहना होगा। ये धारणा ठीक नहीं है महाराज जी
यहाँ पर हमें समझा रहे हैं की हमारा कल्याण तभी संभव है जब हम इसके लिए
स्वयं प्रयासरत रहेंगे (बिना पंखा ढुलाए हवा नहीं मिलती है)और इस सन्दर्भ
में महाराज जी प्रत्यक्ष रूप में कह रहे हैं की उनका संरक्षण पाने के लिए,
सुख- दुःख में उनका साथ पाने लिए हमें उनके उपदेशों पर चलना होगा (जो कहा
जाय उस पर चलने से काम होता है)।
महाराज जी नियमित रूप
से हम सबको याद दिलाते रहे हैं की बुरे काम का फल सदैव बुरा ही होता है ये
संसार भोगने की भूमि है और ये बात अटल है कि कर्म और उनके फल के इस चक्र
से कोई भी बच नहीं सकता है ना कोई देवी-देवता, ना भगवान का कोई अवतार और
ना ही हम मनुष्य श्रीकृष्ण का सानिध्य पा कर भी पांडवों की कठिनाइयां सरल
नहीं हो गई थीं वनवास, अज्ञातवास सबका सामना उन्हें करना ही पड़ा था इस
सन्दर्भ में सभी देवा -देवताओं ने भी अपना धर्म निभाया है, अर्थात जो काम
उनको करना था वो उन्होंने किया, तब भी जब उन्हें इसके लिए स्वयं के साथ
संघर्ष करना पड़ा (देवी -देवता आलस्य पर लात मार कर, मन से जबरदस्ती लड़कर
अपना काम करके अजर-अमर हो गये)।
हम मनुष्यों का
दर्जा तो देवताओं से ऊँचा माना गया है (हम सबने ये कहीं ना कहीं पढ़ा भी
होगा की देवी -देवता मनुष्य योनि में जन्म लेने के इच्छुक रहते हैं) इसलिए
जो लोग ऐसा कहते हैं की भाई, हम महाराज जी के दिखाए मार्ग पर नहीं चल सकते
या उनके उपदेशों पर चलने में आना कानी करते है, उनका भला नहीं हो सकता है
(यह बातें कायर की हैं कि हम से कुछ न होगा) बाहरी या
दिखावे वाली भक्ति व्यर्थ है - उसका हमें कोई फल नहीं मिलता इससे हम केवल
अपने आप को धोखा देते हैं (जब मन लगा कर न किया जावेगा तब तिलक -चन्दन
-माला -कन्ठी -भेष कुछ काम न देगा)। भक्ति के लिए
सच्चे भाव होना आवश्यक है तभी महाराज जी यहाँ पर समझा रहे हैं कि वर्तमान
जीवन में और शरीर छूटने के बाद अर्थात मृत्यु पश्चात् अगले जन्म में भी
अच्छे कर्म और सच्ची भक्ति का लाभ ईश्वर/हमारे इष्ट हमें सदैव देते हैं
क्योंकि वो तो सर्व शक्तिशाली है और सर्वज्ञ भी है।
अच्छे कर्मों के बारे
में भी महाराज जी ने अपने मुख्य उपदेशों में बात की है और
हाँ, भजन -सत्संग इत्यादि भक्ति करते समय ध्यान भटकना कोई बहुत बड़ी बात
नहीं है हम सब मनुष्य ही हैं, बहुत से लोग तो गृहस्थ भी हैं इसलिए घर-
गृहस्थी, नौकरी -व्यापार की बातें दिमाग में आती ही रहती हैं मन लगाने के
इच्छुक लोगों को भक्ति के समय यदि ऐसे विचार आते हैं तो उन्हें ऐसे विचारों
वहीँ पर रोक कर, अपना मन वापस भक्ति में लगाने का प्रयत्न करना होगा थोड़ा
अभ्यास से ऐसा करना संभव है, यदि इसके लिए हम अपने अंदर इच्छाशक्ति उत्पन्न
कर सकें तो!!
महाराज जी सबका भला करें।