दिव्यांगता में डिस्चार्ज ही विकल्प नहीं, शेल्टर अपॉइंटमेंट भी दिया जा सकता है- विजय कुमार पाण्डेय
लखनऊ। शाहजहाँपुर निवासी हवलदार विपिन कुमार सक्सेना के
मामले में सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायाधीश उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय
रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय, रिकार्ड बाम्बे
इंजीनियर ग्रुप और पी०सी०डी०ए० (पेंशन) प्रयागराज के आदेश को निरस्त करते
हुए 50% दिव्यांगता पेंशन देने का फैसला सुनाया।
मामला
यह था कि हवलदार विपिन कुमार सक्सेना वर्ष 1996 में सेना के बाम्बे
इंजीनियर ग्रुप में भर्ती हुए और 22 वर्ष की सैन्य सेवा के बाद वर्ष 2016
में उसे स्थायी मेडिकल कटेगरी देकर, मानसिक विक्षिप्त और अवसाद की बीमारी
में दिव्यांगता पेंशन का लाभ दिए बगैर डिस्चार्ज कर दिया और उसकी शेल्टर
अपॉइंटमेंट की मांग भी ख़ारिज कर दी और कहा कि दोनों बीमारियाँ आनुवांशिक है
इसलिए आपको सेना कुछ भी नहीं देगी, जबकि वह 40% विकलांग था। वादी
के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने 2021 में सेना कोर्ट लखनऊ में वाद दायर
किया और सुनवाई के दौरान दलील दी कि मानसिक अवसाद और विक्षिप्तता सैन्य
सेवा की विषम परिस्थितयों में होना कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं, चाहे वह
पीस एरिया में हो या फील्ड एरिया में, तनाव और दबाव दोनों में बराबर ही
होते हैं।
इसे दो भागों में विभाजित करके इसके प्रभाव को कमतर नहीं आँका जा
सकता, विजय कुमार पाण्डेय ने यह भी दलील दी कि वादी को किसी अन्य जगह पर
समायोजित करके उससे पूरी सर्विस कराई जा सकती थी लेकिन उसे भी नहीं किया
गया, जबकि उच्चतम-न्यायालय ने ऐसी स्थिति में पेंशन देने का निर्णय सुनाया
है, और संदेह का लाभ वादी को दिया जाना चाहिए। दोनों
पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद खण्ड-पीठ ने निर्णय दिया कि दिव्यांगता
पेंशन के मामले में सेना ने जो मानदण्ड और तर्क दिए हैं वह स्वीकार करने
योग्य नहीं है और संपूर्ण सत्य को नहीं दर्शाते इसलिए संदेह का लाभ वादी को
ही मिलेगा। खण्ड-पीठ ने भारत सरकार को आदेशित किया
कि डिस्चार्ज की तारीख से वादी को 40% को राउंड फीगर में करते हुए 50%
दिव्यांगता पेंशन आजीवन, चार महीने के अंदर दिया जाए, यह भी कहा कि यदि
सरकार निर्णय का अनुपालन नियत समय में नहीं करेगी तो उसे 8% व्याज भी वादी
को देना होगा।